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________________ १५२ जनधर्म ___ जीव कब कैसे कमों को बाँधता है और उनका बँटवारा कैसे होता है ? स्थिति और अनुभागका क्या नियम है ? इत्यादि बातोंका वर्णन जैन कर्मसाहित्यसे जाना जा सकता है । जैन सिद्धान्तमें कर्मोकी १० मुख्य अवस्थाएँ या कर्मोंमें होनेवाली दस मुख्य क्रियाएँ बतलाई हैं जिन्हें 'करण' कहते हैं । उनके नाम हैं-बन्ध, उत्कर्षण, अपकर्षण, सत्ता, उदय, उदीरणा, संक्रमण, उपशम, निधत्ति और निकाचना। बन्ध-कर्मपुद्गलोंका जीवके साथ सम्बन्ध होनेको बन्ध कहते हैं। यह सबसे पहली दशा है ? इसके बिना अन्य कोई अवस्था नहीं हो सकती। इसके चार भेद हैं-प्रकृति बन्ध, स्थिति बन्ध, अनुभाग बन्ध, और प्रदेश बन्ध । जब जीवके साथ कर्म पुद्गलोंका बन्ध होता है उसमें जीवके योग और कषायके निमित्तसे चार बातें होती हैं, प्रथम, तुरन्त ही उनमें ज्ञानादिकको घातने वगैरहका स्वभाव पड़ जाता है । दूसरे, उनमें स्थिति पड़ जाती है कि ये अमुक समय तक जीवके साथ बंधे रहेंगे। तीसरे, उनमें तीन या मन्द फल देने की शक्ति पड़ जाती है, चौथे वे नियत तादादमें ही जीवसे सम्बद्ध होते हैं । जैसा कि पहले बतलाया है। उत्कर्षण-स्थिति और अनुभागके बढ़नेको उत्कर्षण कहते हैं। अपकर्षण-स्थिति और अनुभागके घटनेको अपकर्षण कहते हैं। बन्ध के बाद बँधे हुए कमों में ये दोनों क्रियाएँ होती हैं। बुरे कर्मों का बन्ध करनेके बाद यदि जीव अच्छे कर्म करता है तो उसके पहले बाँधे हुए बुरे कमोंकी स्थिति और फलदानशक्ति अच्छे भावोंके प्रभावसे घट जाती है। और अगर बुरे कोका बन्ध करके उसके भाव और भी अधिक कलुषित हो जाते हैं और वह और भी अधिक बुरे काम करनेपर उतारू हो जाता है तो बुरे भावोंका असर पाकर पहले बाँधे हुए
SR No.010347
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Digambar Sangh
Publication Year1966
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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