SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 45
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सामान्यावलोकन नदी है । उसके पश्चिम तटपर ब्राह्मण कुण्डपुर, क्षत्रिय कुण्डपुर, वाणिज्य ग्राम, करमार ग्राम और कोल्लाक सन्निवेश जैसे अनेक उपनगर या शाखा ग्राम थे । भगवान् महावीरका जन्मस्थान वैशाली माना जाता है, क्योंकि कुण्डग्राम वैशालीका ही उपनगर था । इनके पिता सिद्धार्थ काश्यप गोत्रिय ज्ञातृक्षत्रिय थे और ये उस प्रदेशके राजा थे । रानी त्रिशलाकी कुक्षिसे चैत्र शुक्ला त्रयोदशीकी रात्रिमें कुमार वर्द्धमानका जन्म हुआ । इनने अपने बाल्यकाल में संजय-विजय ( संभवत: सञ्जयवेलट्ठिपुत्त ) के तत्त्वविषयक संशयका समाधान किया था, इसलिए लोग इन्हें सन्मति भी कहते थे । ३० वर्ष तक ये कुमार रहे । उस समयकी विषम परिस्थितिने इनके चित्तको स्वार्थसे जन-कल्याणकी ओर फेरा। उस समयकी राजनीतिका आधार धर्म बना हुआ था । वर्ग-स्वाथियोंने धर्मकी आड़ में धर्मग्रन्थोंके हवाले दे-देकर अपने वर्गके संरक्षणकी चक्की में बहुसंख्यक प्रजाको पीस डाला था । ईश्वरके नाम पर अभिजात वर्ग विशेष प्रभु-सत्ता लेकर ही उत्पन्न होता था । इसके जन्मजात उच्चत्वका अभिमान स्ववर्गके संरक्षण तक ही नहीं फैला था, किन्तु शूद्र आदि वर्णों के मानवोचित अधिकारोंका अपहरण कर चुका था और यह सब हो रहा था धर्मके नाम पर । स्वर्गलाभ के लिए अजमेधसे लेकर नरमेध तक धर्मवेदी पर होते थे । जो धर्म प्राणिमात्रके सुख-शान्तिऔर उद्धारके लिए था, वही हिंसा, विषमता, प्रताड़न और निर्दलनका अस्त्र बना हुआ था । कुमार वर्द्धमानका मानस इस हिंसा और विषमता से होनेवाली मानवताके उत्पीड़नसे दिन-रात बेचैन रहता था । वे व्यक्तिकी निराकुलता और समाज - शान्तिका सरल मार्ग ढूँढ़ना चाहते थे और चाहते थे मनुष्यमात्रकी समभूमिका निर्माण करना । सर्वोदयकी इस प्रेरणाने उन्हें ३० वर्षकी भरी जवानीमें राजपाट को छोड़कर योगसाधनको ओर प्रवृत्त किया । जिस परिग्रहके अर्जन, रक्षण, संग्रह और भोगके लिए वर्गस्वार्थियोंने धर्मको राजनीति में दाखिल किया था उस परिग्रहकी बाहर-भीतरकी दोनों गाँठें खोलकर वे परम निर्ग्रन्थ हो अपनी मौन साधनामें लीन हो 1
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy