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________________ ३८० lor ३८३ विषयानुक्रम ३१ हेतुस्वरूप-मीमांसा ३१९ शब्दको अर्थवाचकता ३६४ हेतुके प्रकार ३२४ अन्यापोह शब्दका वाच्य नहीं ३६४ कारणहेतुका समर्थन ३२५ सामान्यविशेषात्मक अर्थ पूर्वचर, उत्तरचर और सहचर वाच्य है ३६६ हेतु ३२७ प्राकृत-अपभ्रंश शब्दोंकी अर्थ वाचकता ३७३ हेतुके भेद उपसंहार ३७९ अदृश्यानुपलब्धि भी ज्ञानके कारण अभावसाधिका ३३१ बौद्धोंके चार प्रत्यय और उदाहरणादि ३३३ तदुत्पत्ति आदि ३८१ व्याप्य और व्यापक ३३४ अर्थ कारण नहीं अकस्मात् धूमदर्शनसे होने- आलोक भी ज्ञानका कारण नहीं ३८६ वाला अग्निज्ञान प्रत्यक्ष नहीं ३३६ प्रमाणका फल ३८७ अर्थापत्ति अनुमानमें अन्त- प्रमाण और फलका भेदाभेद ३८९ भूत है ३३६ प्रमाणाभास ३९० संभव स्वतन्त्र प्रमाण नहीं ३३८ सन्निकर्षादि प्रमाणाभास ३६२ अभाव स्वतन्त्र प्रमाण नहीं ३३८ प्रत्यक्षाभास ३९२ कथा-विचार ३४० परोक्षाभास ३९३ साध्यकी तरह साधनोंकी भी सांव्यवहारिक प्रत्यक्षाभास ३९३ पवित्रता ३४३ मुख्यप्रत्यक्षाभास ३९३ जय-पराजयव्यवस्था ३४५ स्मरणाभास ३९३ पत्रवाक्य ३५० प्रत्यभिज्ञानाभास ३९३ आगमश्रुत ३५२ तर्काभास ३९४ श्रुतके तीन भेद ३५३ अनुमानाभास ३९४ आगमवाद और हेतुवाद ३५४ हेत्वाभास ३९५ वेदके अपौरुषेयत्वका विचार ३५९ दृष्टान्ताभास ४०० शब्दार्थप्रतिपत्ति ३६३ उदाहरणाभास ४०२
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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