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________________ ३० २६८ २७४ ३०२ २७५ २७५ जैनदर्शन सन्निकर्ष-विचार २६९ प्रत्यभिज्ञान श्रोत्र अप्राप्यकारी नहीं २७१ सः और अयमको दो ज्ञान ज्ञानका उत्पत्तिक्रम माननेवाले बौद्धका खंडन २९६ अवग्रहादि भेद २७२ प्रत्यभिज्ञानका प्रत्यक्षमें सभी ज्ञान स्वसंवेदी है २७३ अन्तर्भाव ३०० अवग्रहादि बहु आदि अर्थोके उपमान सादृश्यहोते है प्रत्यभिज्ञान है ३०१ विपर्ययज्ञानका स्वरूप २७४ नैयायिकका उपमान भी असत्ख्याति आदि विपर्ययरूप ___सादृश्यप्रत्यभिज्ञान है नहीं तर्क ३०३ विपर्ययज्ञानके कारण व्याप्तिका स्वरूप ३०८ अनिर्वचनीयार्थख्याति नहीं २७६ अनुमान अख्याति नहीं लिंगपरामर्श अनुमितिका असत्ख्याति नहीं २७६ कारण नहीं ३०९ विपर्यज्ञान अविनाभाव तादात्म्य तदुत्पत्ति स्मृतिप्रमोष से नियन्त्रित नहीं संशयका स्वरूप ३११ साध्य ३११ पारमार्थिक प्रत्यक्ष ३१२ अवधिज्ञान अनुमानके भेद २७८ स्वार्थानुमानके अंग मनःपयंयज्ञान केवलज्ञान धर्मीका स्वरूप ३१३ २७६ ३१४ सर्वज्ञताका इतिहास परार्थानुमान परोक्ष प्रमाण ३१४ परार्थानुमानके दो अवयव २९२ चार्वाकके परोक्षप्रमाण अवयवोंकी अन्य मान्यताएँ ३१५ न माननेकी आलोचना २६४ प्रक्षप्रयोगको आवश्यकता ३१६ स्मरण २६५ उदाहरणकी व्यर्थता ३१७ ३१० २७६ साधन mr r २७८ r mm २७६ २८०
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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