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________________ विषयानुकुम २३२ २३८ २४१ २४१ आत्माकी दशा २१० दोपनिर्वाणकी तरह आत्मदृष्टि ही सम्यग्दृष्टि २१४ आत्मनिर्वाण नहीं नैरात्म्यवादको असारता २१७ निर्वाणमें ज्ञानादि गुणोंका पञ्चस्कन्धरूप आत्मा नहीं २१८ सर्वथा उच्छेद नहीं होता २३३ आत्माके तीन प्रकार २२० मिलिन्द्र प्रश्न के निर्वाणचारित्रका आधार २२० वर्णनका तात्पर्य २३४ अजीवतत्त्व २२२ मोक्ष न कि निर्वाण २३७ बन्धतत्त्व २२४ संवरतत्त्व चार बन्ध २२५ समिति २३९ आस्रवतत्त्व २२६ धर्म २३६ मिथ्यात्व २२७ अनुप्रेक्षा अविरति २२७ परीषहजय प्रमाद २२८ चारित्र २४१ कषाय योग २२६ निर्जरातत्त्व २४२ दो आस्रव २३० मोक्षके साधन २४३ मोक्षतत्त्व २३१ प्रमाणमीमांसा २४६-४४० ज्ञान और दर्शन २४६ इन्द्रियव्यापार भी प्रमाण नहीं २५८ प्रमाणादि व्यवस्थाका आधार २४७ प्रमाण्य-विचार २५८ २४१ प्रमाणसम्प्लव-विचार प्रमाणका स्वरूप २६२ प्रमाणके भेद २६४ प्रमाण और नय २५१ प्रत्यक्षका लक्षण २६५ विभिन्न लक्षण दो प्रत्यक्ष अविसंवादको प्रायिक स्थिति २५३ सांव्यवहारिक प्रत्यक्ष तदाकारता प्रमाण नहीं २५५ इन्द्रियोंकी प्राप्यकारिता सामग्री प्रमाण नहीं २५६ अप्राप्यकारिता २६६ २५२
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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