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________________ २८ जनदर्शन स्वरूप पुद्गलद्रव्य कालद्रव्य स्क १८७ जैसी करनी वैमो भरनी १५२ शब्द आकाशका गुण नहीं १७४ नूतन शरीरधारणकी प्रक्रिया १५५ आकाश प्रकृतिका विकार नहीं १७५ सृष्टिचक्र स्वयं चालित है १५७ बौद्धपरम्करामे आकागका जीवोंके भेद : संसारी और मुक्त १५६ १७७ १७७ स्कन्धोके भेद १६२ वैशेपिक मान्यता १७८ स्कन्ध आदि चार भेद १६३ बौद्धपरम्परामे काल १७६ बन्धकी प्रक्रिया १६४ वैशेपिककी द्रव्यमान्यताका विचार १७६ शब्द आदि पुद्गलको पर्याये है १६५ गुण आदि स्वतन्त्र पदार्थ नहीं १८० शब्द शक्तिरूप नही है १६६ अवयवीका स्वरूप पुद्गलके खेल १६७ गुण आदि द्रव्यरूप ही है १८६ छाया पुद्गलकी पर्याय है १६८ रूपादि गुण प्रातिभासिक एक ही पुद्गल मौलिक १६६ नहीं है पृथिवी आदि स्वतन्त्र द्रव्य नहीं १६६ कार्योत्पत्ति-विचार १६२ प्रकाश व गरमी शक्तियां नहीं १७० सांख्यका सत्कार्यवाद १६२ परमाणुकी गतिशीलता १७१ नैयायिकका असत्कार्यवाद १६३ धर्मद्रव्य और अधर्मद्रव्य १७२ बौद्धोंका असत्कार्यवाद १९३ आकाशद्रव्य १७३ जैनदर्शनका सदसत्कार्यवाद १६४ दिशा स्वतन्त्र द्रव्य नहीं १७४ धर्मकीतिके आक्षेपका समाधान १६५ ७. तत्त्व-निरूपण १०८-२४५ तत्त्वव्यवस्थाका प्रयोजन १९८ तत्त्वोंके दो रूप २०५ बौद्धोंके चार आर्यसत्य १९६ तत्त्वोंकी अनादिता २०६ बुद्धका दृष्टिकोण २०० आत्माको अनादिवद्ध माननेका जैनोके सात तत्त्वोका मूल कारण २०७ आत्मा २०२ व्यवहारसे जीव मूर्तिक भी है २१० २०१
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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