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________________ अव्याकृतवाद उत्पादादित्रयात्मक परि णामवाद दो विरुद्ध शक्तियाँ लोक शाश्वत है ११० द्रव्ययोग्यता और पर्याययोग्यता ११० विषयानुक्रम १०८ चेतनसृष्टि समाजव्यवस्थाके लिये कर्मकी कारणता जड़वाद और परिणामवाद जड़वादका आधुनिक रूप जड़वादका एक और स्वरूप विरोधिसमागम अर्थात् उत्पाद और व्यय गुण और धर्म अर्थ सामान्यविशेषात्मक है स्वरूपास्तित्व और सन्तान सन्तानका खोखलापन उच्छेदात्मक निर्वाण अप्रा तीतिक है छह द्रव्य जीवद्रव्य व्यापक आत्मवाद अणु आत्मवाद भूतचैतन्यवाद १०६ १०९ समाजव्यवस्थाका आधार समता जगत्स्वरूप के दो पक्ष विज्ञानवाद ११२ ११२ १९५ ११६ ११६ ५. पदार्थका स्वरूप जड़वादो अनुपयोगिता १२१ लोक और अलोक लोक स्वयं सिद्ध है जगत् पारमार्थिक और स्वतः सिद्ध है १ १३३ दो सामान्य १३४ दो विशेष सामान्यविशेषात्मक अर्थात् द्रव्यपर्यायात्मक १३४ १३६ १३७ ६. षद्रव्य विवेचन १४२ १४२ १४३ १२० १२२ १२३ १२८ १२८ १२६ १३२ - १४१ १३९ १३९ १४० १४२-१९७ इच्छा आदि आत्मधर्म हैं कर्त्ता और भोक्ता रागादि वात-पितादिके धर्म १४४ १५० नहीं १४५ विचार वातावरण बनाते हैं १५० १४७ १४ε
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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