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________________ जैनदर्शन ३. भारतीय दर्शनको जैनदर्शनकी देन ४८-६७ मानस अहिंसा अर्थात् अनेकान्त स्यात् एक प्रहरी ५७ दृष्टि ४८ स्यात्का अर्थ शायद नहीं ५७ वस्तु सर्वधर्मात्मक नही ५० अविवक्षितका सूचक 'स्यात्' ५८ अनेकान्तदृष्टिका वास्तविक क्षेत्र ५० धर्मज्ञता और सर्वज्ञता मानस समताको प्रतीक ५१ निर्मल आत्मा स्वयं प्रमाण स्याद्वाद एक निर्दोष भाषा शैली ५२ निरीश्वरवाद अहिसाका आधारभूत तत्त्वज्ञान : कर्मणा वर्णव्यवस्था अनेकान्तदर्शन ५३ अनुभवको प्रमाणता विचारकी चरमरेखा ५४ साधनकी पवित्रताका आग्रह स्वतः सिद्ध न्यायाधीश ५५ तत्त्वाधिगमके उपाय वाचनिक अहिसा : स्याहाद ५६ ४. लोकव्यवस्था ६८-१३१ लोकव्यवस्थाका मूल मन्त्र ६८ पुण्य और पाप क्या ? २ परिणमनोके प्रकार ७० गोडसे हत्यारा क्यो? १२ परिणमनका कोई अपवाद नही ७१ एक ही प्रश्न एक ही उत्तर ६३ धर्मद्रव्य ७२ कारणहेतु अधर्मद्रव्य ७३ नियति एक भावना है आकाशद्रव्य ७३ कर्मवाद कालद्रव्य ७३ कर्म क्या है ? निमित्त और उपादान ७५ कर्मविपाक कालवाद ८० यदृच्छावाद स्वभाववाद ८१ पुरुषवाद नियतिवाद ईश्वरवाद आ० कुन्दकुन्दका अकर्तत्ववाद ८८ भूतवाद
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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