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________________ लोकव्यवस्था होनेसे हत्यारा है; तो महात्माजी नाथूरामके गोली चलाने में निमित्त होनेसे अपराधी क्यों नहीं ? यदि नियतिदास नाथूराम दोषी है तो नियति-परवश महात्माजी क्यों नहीं ? हम तो यह कहते है कि पिस्तौलसे गोली निकलनी थी और गोलीको छातीमें छिदना था, इसलिए नाथूराम और महात्माजीकी उपस्थिति हुई । नाथूराम तो गोली और पिस्तौलके उस अवश्यंभावी परिणमनका एक निमित्त था, जिसे नियतिचक्रके कारण वहाँ पहुँचना पड़ा। जिन पदार्थों की नियतिका परिणाम हत्या नामकी घटना है, वे सब पदार्थ समानरूपसे नियतियन्त्रसे नियन्त्रित हो जब उसमें जुटे है, तब उनमेंसे क्यों मात्र नाथूरामको पकड़ा जाता है ? इतना ही नहीं, हम सबको उस दिन ऐसी खबर सुननी थी और श्री आत्माचरणको जज बनना था, इसलिये यह सब हुआ। अतः हम सब और आत्माचरण भी उस घटनाके नियत निमित्त हैं। अतः इस नियतिवादमें न कोई पुण्य है, न पाप, न सदाचार और न दुराचार । जब कतत्व ही नहीं, तब क्या सदाचार और क्या दुराचार ? गोडसेको नियतिवादके नामपर ही अपना बचाव करना चाहिये था और जजको ही पकड़ना चाहिये था कि 'चूंकि तुम्हें हमारे मुकद्दमेका जज बनना था, इसलिये यह सव नियतिचक्र घूमा और हम सब उसमें फंसे।' और यदि सबको बचाना है, तो पिस्तौलके भविष्य पर सब दोष थोपा जा सकता है कि 'न पिस्तौलका उस समय वैसा परिणमन होना होता, तो न वह गोडसेके हाथमें आती और न गाँधीजीकी छाती छिदती। सारा दोष पिस्तौलके नियत परिणमनका है ।' तात्पर्य यह कि इस नियतिवादमें सब माफ है, व्यभिचार, चोरी दगाबाजी और हत्या आदि सब कुछ उन-उन पदार्थोके नियत परिणाम है, इसमें व्यक्तिविशेषका कोई दोष नहीं। एक ही प्रश्न : एक ही उत्तर: इस नियतिवादमें एक ही प्रश्न है और एक ही उत्तर । 'ऐसा क्यों हुआ', 'ऐसा होना ही था' इस प्रकारका एक ही प्रश्न और एक ही उत्तर
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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