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________________ ९२ जैनदर्शन नहीं उत्पन्न हुआ ? अतः गुरुको 'कर्तृत्व' का दुरहंकार उत्पन्न न होनेके लिए उस अकर्तृत्व भावनाका उपयोग है । इस अकर्तृत्वको सीमा पराकर्तृत्व है, स्वाकर्तृत्व नहीं । पर नियतिवाद तो स्वकर्तृत्वको ही समाप्त कर देता है; क्योंकि इसमें सब कुछ नियत है । पुण्य और पाप क्या ? : जब प्रत्येक जीवका प्रतिसमयका कार्यक्रम निश्चित है अर्थात् परकर्तृत्व तो है ही नहीं, साथ ही स्वकर्तृत्व भी नहीं है तब क्या पुण्य और क्या पाप ? क्या सदाचार और क्या दुराचार ? जब प्रत्येक घटना पूर्वनिश्चित योजनाके अनुसार घट रही है तब किसीको क्या दोष दिया जाय ? किसी स्त्रीका शील भ्रष्ट हुआ । इसमे जो स्त्री, पुरुष और शय्या आदि द्रव्य संबद्ध है, जब सबकी पर्यायें नियत है तब पुरुषको क्यों पकड़ा जाय ? स्त्रीका परिणमन वैसा होना था, पुरुषका वैसा और विस्तरका भी वैसा । जब सबके नियत परिणमनोंका नियत मेलरूप दुराचार भी नियत ही था, तब किसीको दुराचारी या गुण्डा क्यों कहा जाय ? यदि प्रत्येक द्रव्यका भविष्य के प्रत्येक क्षणका अनन्तकालीन कार्यक्रम नियत है, भले ही वह हमे मालूम न हो, तब इस नितान्त परतन्त्र स्थितिमे व्यक्तिका स्वपुरुपार्थ कहाँ रहा ? गोडसे हत्यारा क्यों ? : नाथूराम गोडसेने महात्माजीको गोली मारी तो क्यों नाथूरामको हत्यारा कहा जाय ? नाथूरामका उस समय वैसा ही परिणमन होना था, महात्माजीका वैसा ही होना था और गोली और पिस्तौलका भी वैसा ही परिणमन निश्चित था । अर्थात् हत्या नामक घटना नाथूराम, महात्माजी, पिस्तौल और गोली आदि अनेक पदार्थोके नियत कार्यक्रमका परिणाम है । इस घटना से सम्बद्ध सभी पदार्थोके परिणमन नियत थे, सब परवश थे । यदि यह कहा जाता है कि नाथूराम महात्माजीके प्राणवियोगमे निमित्त
SR No.010346
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahendramuni
PublisherGaneshprasad Varni Digambar Jain Sansthan
Publication Year1966
Total Pages639
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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