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________________ श्री भगवती सूत्र तो जहा व राई दियाई ॥ २ ॥ सत्रो मार्ट सिद्धो न यादिमो विजई तहा त च । सिद्धी सिद्धा सया निट्टा रोहपुच्छार ॥ ३ ॥ "त्ति, 'त चति तच्च सिद्धानादित्त्वमिष्यते. यतं 'सिद्धी सिद्धा ये'त्यादीति । 'सर्वसिहिया लहिमित्यादि, भवसिद्धिकांना भव्य वलब्धि द्विवेऽपैनीतिकृत्वाऽनादिः सपर्यवसिता चेति || मृनम्-ममणोवासगस्म भते ! पुञ्चामेव तमपणिममारमे पच्चक्खाए भवति पुढविसमारंभे श्रपचक्खाए भव से ग पुढवि खणमाणेऽरणयर तसं पाण विहिंसेज्जा से या मंते । तं चयं श्रतिचरति १, शशी तिराह े समह े, नो खलु से तमन प्रतिवायाए श्राउट्टति || ममणोवामवस्य गं भंते! पुयामेव चणम्ससमारभे पच्चक्खाए से य पुत्रवि खणमा अन्नरस्त रुक्खस्स मूल हिंदेज्जा से गं मते तवय अतिचरति, यो तियह नमटूडे, ना . खलु तरम ग्रवाय।ए आउट्टति || · ७ঙ - श्री भगवती सूत्र ॥ ६३ ॥ धनोतु टीकासे नग्न पतियावा पानमाम्य परशतयार न 'पासमारंभेमि
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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