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________________ जैनागमों मे स्याद्वाद अनादी अपज्जवसिए तहाँ णं जीवाणं किं सादीया सपज्जवसिया ?, चउभंगो पुच्छा, गोयमा ! अथेतिया सादीया सपज्जवसिया चत्तारिवि भाणियन्त्रा । से केह गं० १, गोयमा ! नेरतिया तिरिक्खजोशिया मनुस्सा देवा गतिरागति पहुच्च सादीया सपज्जवसिया सिद्धि द्धा गतिं पडुच्च सादीया पज्जवसिया, भवसिद्धिया लद्धिं पहुच गादीया सपज्जवसिया अभवसिद्धिया संसार पड़चणादीया अपज्जवसिंया, से तेराह गं० ॥ - श्री भगवती सूत्र ६१२/२३५ ॥ कु टीका - सादिद्वारे 'ईरियावहियववस्ते' त्यादि, ईर्याथोगमनमार्गस्तत्रभवमैर्यापथिकं केवलयोग प्रयोगप्रत्ययं कर्मेत्यर्थः तद्वंधकस्योपशान्तमोहम्य क्षीणमोहस्य सयोगिकेच निश्च त्यर्थ ऐर्यापथिककर्मणो हि पूर्वस्य बन्धनान् सार्दित्य, अयोग्यवायां श्रेणिप्रतिपाते वाऽवन्धनात् सपर्यवसितत्वं, 'गतिरागई. पडुच्च' ति नारकादिगतौ गमनमाश्रित्य सादय श्रागमनमाश्रित्य सपर्यवसिता इत्यर्थः 'सिद्धा गई' पहुच्च साइया प्रपजवसिय त्ति, इहाक्षेप परिहारावेवम् - "सांईग्रपज्जवसिया सिद्धा न य नाम ती कालंमि । श्रसि कयाइवि सुरणा सिद्धी सिद्ध हिं सिद्धते ॥ १॥ सव साइ सरीरं न य नामादि मय देहसम्भावो । कालारणाइ 39 ,
SR No.010345
Book TitleJainagamo me Syadvada
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherJain Shastramala Karyalaya Ludhiyana
Publication Year
Total Pages289
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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