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________________ व्याख्या कोष] १९--सयति - पाचों इन्द्रियो और मन के विकारो पर पूरी तरह से विजय प्राप्त करन __वाला मुनि अथवा आदर्श पुरुष 'सयति' कहलाता है। । २०-सयम __ पांचो इन्द्रियो और मन के विकारो पर पूरी तरह से अथवा वा तरह से विजय प्राप्त कर लेना ही सयम है । अथवा हिंसा, झुल, चोयें, मैथुन, परिग्रह, का त्याग करना भी 'सयम' ही कहलाता है। २१-~सयमासयम - श्रावक और श्राविकाओ का चारित्र ‘सयमासयम' ही कहलाता है। २२-संयोग - पुण्य के उदय से प्राप्त होनेवाला योग अथवा अच्छा प्रसग । २३-संलेखना यह एक विशेष प्रकार की जीवन-पर्यत की पाप-दोषों को स्पष्ट पार खली आलोचना और प्रायश्चित है । जव जीवन का अत अति निकट वाया ___ जान लिया जाता है, तव इसका आचरण किया जाता है। इसमे सभी प्रकार आहार, ममता और परिग्रह से पूर्णतया सक्ध विच्छेद कर लिया जाता है निर्दोष स्थान पर विधि अनुसार शैय्या विछाकर शेष जीवन पर्यन्त के लिये आहार आदि का त्याग कर गुरु आदि के सम्मुख जीवन भर के पास काह साफ साफ बयान किया जाता है, उनके लिए क्षमा और पूरा पूर खेद प्रकट किया जाता है । जीव-माश के साथ क्षमा मांगते हुए उनसे मैत्रा संबंध जोडा जाता है। तीन कारण और तीन योग से आहार आदि सभी प्रवृक्षियों कर करके शेष जीवन में ईश्वर-भजन और आत्म-चिंतन मे पूरी पूरी कह से सलान हो जाना पडता है । मृत्यु के प्रति सर्वथा अनासक्त और रिसरमा भावना रखते हए समय व्यतीत करना पडता है। यही सलेखना व्रत है। जो कि जानने योग्य है किन्तु आचरण योग्य नहीं है। वे इस प्रकार है :
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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