SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 530
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६४] [ ब्याख्या कोष ! (१०) " नपुन्सक लिंग" में सिद्ध होने वाले "नपुन्सके लिंग सिद्ध" है जैसे कि भीष्म आदि । ( ११ ) किसी भा अनित्य पदार्थ को देख कर विचार करते करते ज्ञान प्राप्त हुआ और तत्पश्चात् केचल - ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त हुए हो; ऐसे “प्रत्येक बुद्ध” सिद्ध कहलाते है, जैसे करकडु राजा । ( १२ ) स्वयमेव ज्ञान प्राप्त करके मोक्ष प्राप्त किया हो, ऐसे "स्वयबुद्ध सिद्ध" कहलाते है जैसे कपिल आदि । } ( १३ ) गुरु उपदेश से ज्ञानी होकर सिद्ध हुए, वे "बुद्ध-बोधित सिद्ध” कहलाते हैं, जैसे अर्जुन माली आदि । } ( १४ ) एक समय में एक ही मोक्ष जाने वाले "एक सिद्ध" कहलाते है, जैसे महावीर स्वामी आदि । (१५) एक समय में अनेक मुक्त होने वाले "अनेक सिद्ध" कहलाते हैं, जैसे ऋषभदेव स्वामी आदि । ये उपरोक्त भेद ससारी स्थिति तक ही है, सिद्ध होने के पश्चात मोक्ष मे पहुँच जाने के बाद किसी भी प्रकार का भेद वा अन्तर नहा रह जाता है । - १७ - सूत्र थोड़े शब्दों अनेक शब्दो द्वारा कहे जाने वाले, विस्तृत और गभीर अर्थवाले वाक्यों को बुद्धिमाना के साथ उसके सपूर्ण अर्थ की रक्षा करते हुए अति में ही, न्यून से न्यून शब्दो में ही गूथ देना अथवा सग्रथित कर रचना" है । ऐसी शब्द रचना सूत्र कहलाती है, जो कि अति थोडे होती हुई भी विस्तृत और गभीर अर्थ रखती हो । देना " सूत्र - शब्दो वाली महती शाति को धारण करने वाला ऋषि-मुनि संत कहला कहलाता है - सपूर्ण जैन आगम शब्द रचना की शैली से अति सूक्ष्म होते हुए भी अर्थ के दृष्टिकोण से विस्तृत और गभीर है, इसीलिए इनका एक सज्ञा सूत्र भी समाज में प्रसिद्ध और रूढ हो गई है । 1 1 } १८- संत
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy