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________________ [सत्यादि भाषा-सूत्र. इनका परस्पर मे तादात्म्य सम्बन्ध है, दोनो अभिन्न सम्बन्ध वाली है। (४) सच्चस्स आणाए से, उट्ठिए मेहावी मारं तरइ । आ०, ३, ११९, उ, ३ टीका-जो सत्य की आराधना के लिये निष्कपट भाव से शार होता है, वही तत्वदर्शी है, और ऐसा ज्ञानी महापुरुष ही आम्मु-वासना को खत्म कर सकता है । वही पूर्ण और आदर्श ब्रह्मचारी बन सकता है । असावज्ज मियं काले, भासं भासिज्ज पन्न। उ०, २४, १० । - टीका-बुद्धिमान पुरुष, विवेकी पुरुष, समयानुसार और आवश्यबता अनुसार निर्दोप, प्रिय, हितकारी और परिमित भाषा ही बोले। सम्माषण-प्रणालि पर ही बुद्धिमत्ता का आधार है। भासियध्वं हियं सच्च। उ०, १९, २७ टीका-सदैव हितकारी वाणी, प्रिय वाणी और सच्ची वाणी मोरनी चाहिये ! ऐसी वाणी ही स्व. का और पर का कल्याण कर सकती है। न भासिज्जा भास अहिअगामिणि । ३०, ८,
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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