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________________ सूक्ति-सुधा ] ૬૭ टीका — अहित करने वाली, पर मर्म पर आघात करने वाली, हिंसा तथा द्वेष बढ़ाने वाली भाषा नही बोलनी चाहिये । ( ८ ) न श्रसन्भमाहु | उ०, २१, १४ क्लेश सवर्धक, ग्रामीण तुच्छ शब्द i. टीका—असभ्य, अप्रिय, नही बोलना चाहिये | ( ९ ) सच्चे तत्थ करेज्जु वक्कमं । सू०, २, १४, उ, ३ टीका - सत्य और सत्य से सम्बन्धित सभी कामो मे और क्रियाओं मे सदैव यत्नशील ही रहना चाहिये । सत्य का दृढ़ता पूर्वक आग्रह और अवलवन रखना मनुष्य का कर्त्तव्य है । ( १० ) सच्चेसु वा अणवज्जं वयंति । सू०, ६, २३ टीका--सत्यवचनो में भी जो वचन सत्ययुक्त होता हुआ मर्म घाती सत्य न हो, वही वाक्य निर्दोष हो, अप्रिय सत्य न सर्वोत्तम सत्य रूप है | हो, ܘ 6. (११) अप्पं भासेज्ज, सुइत्रए । सू०, ८, २५ टीका-सुव्रती, ज्ञानी, अल्प बोले । परिमित बोले । 'आवश्यकतानुसार बोले । सत्य और प्रिय वोले | ( १२ )न लदे पुट्ठो सावज्जै । उ०, १, २५
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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