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________________ सत्यादि भाषा-सूत्र ..' (१) . . अप्पणा सच्च मेसेज्जा। उ०, ६, २ टीका-सदैव आत्म-चिन्तन द्वारा, आत्म-मनन द्वारा, सत्य की ही खोज करता रहे। सन्मार्ग का ही अनुसधान करता रहे । स्व-परकल्याण के मार्ग मे ही रमण करता रहे । सच्चमि घिई कुव्वहा । आ०, ३, ११३, उ, २ ' टीका-जो सत्य रूप है और जो सत्य की नाना अवस्थाओं में स्थित है, उसीमे वुद्धिमान् पुरुष को अपना चित्त स्थिर करना चाहिए। ऐसे ही कार्यों में धैर्य-शील होना चाहिये। इन्ही में प्रवृत्ति-शील होना चाहिये। : :-( ३ ) . ..."; पुरिसा ! सच्चमेव सममि जाणाहि । . : : आ०, ३,,११९, उ, ३. .. टीकाहे पुरुषो | सत्य को ही सर्वोपरि जानो। सत्य का ही सम्यक् रीति से अनुसधान करो । सत्य का ही विचार करो। सत्य का ही आचरण करो । अहिसा भी जीवन मे इससे स्वयमेव उतर आयगी । क्योकि सत्य और अहिंसा एक ही तत्त्व की दो बाजूऐं है।
SR No.010343
Book TitleJainagam Sukti Sudha Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanrushi Maharaj, Ratanlal Sanghvi
PublisherKalyanrushi Maharaj Ratanlal Sanghvi
Publication Year1950
Total Pages537
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_related_other_literature
File Size13 MB
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