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________________ ८१ तृतीय भाग । अवस्था में मार डालने के लिये कहा था । परन्तु व उन्हें बड़ी जगह अत्यन्त प्रिय है । वे मरना पसन्द नहि करते इसलिये जव तुम उनको मारने जाते हो तब वह भी भीतर घुस जाते हैं इसमें आश्चर्य और खेद करनेकी कोई बात नहीं है । संसारकी स्थिति ही ऐसी है । मुनिराज द्वारा यह धार्मिक उपदेश सुनकर देवरतिको वडा भारी वैराग्य हो गया और संसार में कुछ भी सुख नहीं है ऐसा समझ कर उन्ही के पास मुनिदीक्षा लेकर आत्मकल्याण करने लगा । 9998ccee ६ 415 २२. श्रावकाचार प्रथमभाग । मंगलाचरण | सकल कर्ममल जिनने धोये, हैं वे वर्द्धमान जिनराय । लोकालोक भासते जिसमें, ऐसा दर्पण जिनका ज्ञान ॥ - बडे चाव से भक्तिभावसे, नमस्कार कर वारंवार । . उनके श्रीचरणोंमें प्रणमूं, सुख पाऊं हर विघ्नविकार ॥ १ ॥ 89998CCC जिनके ज्ञान दर्पणी समान, समस्त लोक प्रलोक भासता है और जिन्होंने समस्त कर्मरूपी मल आत्मासे धो दिया है उन श्रीवर्द्धमान ( महावीर ) भगवानको मैं बडे चाव और भक्तिभावसे बारंबार नमस्कार करता हूं ॥ १ ॥
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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