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________________ पाप माण २३७. त्यों मतसौं मतको परखि, पावै पुरुष अमीन ॥ ८ ॥ दोय पक्ष जिनमत विषै, नय निश्चय व्यवहार । तिन बिन कहै न हंसे यह, शिव सरवरकी पार ॥ ६ ॥ सी सी सीम हैं, तीन लोक तिहुँ काल । जिन मतको उपकार सच, जिन भ्रम करहु दयाल ॥१०॥ महिमा जिनवर वचनकी, नहीं बचनवल होय । भुजवलसौं सागर अगम, तिरै न तरहीं कोय ॥ ११ ॥ अपने अपने पंथको, पाखे सकल जहांन । तैसे यह मत पोखना, मत समझो मतिमान ॥ १२ ॥ - इस असार संसारमें, अवर न सरन उपाय | जन्म जन्म ज्यो हमें, जिनवर धर्म सहाय ॥ १३ ॥ 9999EEEe ६७. कौंडेशकी कथा । 9999808 goat गांव गोविंद गोपाल रहा करता था वह कोटर - से प्राचीन शास्त्रको निकालकर पूजा किया करता था । एक वार पद्मनंदी मुनि वहां आए और उन्हें देखकर उस शास्त्रको मुनिमहाराजके सुपुर्द कर दिया कारण कि वह लिखा पढा न या मुनि उस पुस्तकका स्वाध्याय प्रतिदिन किया करते थे और उसीकर सब जगह उपदेश दिया करते थे । कुछ : १ आत्मा जीव । २ मतकरो । · ,
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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