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________________ २३६ . जैनवालवोधक“६६. भूधरजैननीत्युपदेशसंग्रह आठवां भाग। जिनधर्म प्रशंसा । दोहा। • छये अनादि अज्ञानसौं, जगजीवनके नैन । सव मत मूठी धूलकी, अंजन है मत जैन ॥१॥ मूल नदीकै तरनको, अवर जतन कछु है न। सब मत घाट कुघाट हैं, राज घाट है जैन ॥२॥ तीन भुवनमें भर रहे, यावर जंगम जीव । सव मत भक्षक देखिये, रक्षक जैन सदीव ॥३॥ : इस अपार जगजलधिमें, नहिं नहिं और इलाज । पाहन वाहन धर्म सव, जिनवर धर्म जिहाज ।। ४ ।। मिथ्या मतके मद छके, सब मतवाले लोय । • सव मतवाले जानिये, जिनमत मच न होय ॥५॥ मतगुमान गिरि पर चढे, बडे भये मन माहि। लघु देखें सब लोककौं, कौं हू उतरत नाहि ॥६॥ गम चखनसौं सब मती, चितवत करत निवेर । ज्ञान नैनसौं जैन ही, जोवत इतनो फेर ॥ ७॥ ज्यौं वजाज डिंग राखिकैं, पट परखे परवीन। १ पत्थरफी नावें । २ सर्वधर्मावाले । ३ मदोन्मत्त-पागल। ४ धर्मके अगिमानरूपी पहाड पर। ५ चमडेके नेत्रों से-बाहरी नजरसे । ६ देखते हैं। ७ । पास पास रखकर सब कपडोंकी जांच करता है । -
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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