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________________ तृतीय भाग । २३९ राजाने देखकर कहा कि - यह क्या है ? परंतु किसीको मालूम होता तो कोई उत्तर देता, इसलिये जब राजाने कुछ उत्तर न पाया तो उस कूडेको उसी समय अलग करनेका हुकुम दिया । जैसे ही वह अलग किया मुनिजी ध्यानस्थ दिखाई देने लगे । राजाने बडे प्रेमसे दर्शन किये और स्वयमेव हाथांसे शरीर पोंछना शुरू कर दिया। जब तुमने यह देखा तो अपनी asी निंदा की और उसी समय मुनि महाराज से अपने अपरायकी क्षमा मांग नानाप्रकारको औषधियां लगाना शुरूकर दिया और सेवा चाकरी भी खूप करी जिससे मुनिकी पीडा दूर होगई उसी औषधि दानके प्रभावसे धनपतिकी कन्या तृषमसेना हुई हो और सुन्दर सर्व औषधिसम्पन्न शरीर घार किये हो परन्तु कूडा कचराके कारण तुम्हें यह कलंक : भुगतना पडा है । वृपभसेना मुनि महाराजके मुखारविंद से यह सब सुनकर उन मुनिके पास श्रार्थिका हो गई, राजाने बहुत समझाया कि घर चलो परंतु वह न गई । इसलिये प्रत्येक मनुष्यको चाहिये कि यदि सुंदर और सम्पूर्ण औषधियोंके मूल शरीर पानेकी इच्छा है तो नृपभसेना - की तरह रोगी मुनि व श्रावककी वैयावृत्य करे और औषधि : दान दे और पापबंध से वचनेका प्रयत्न करे । 9893EEEe
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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