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________________ तृतीय भाग क १७७ सज धजके सामान बढाना, विना विचारे त्यों प्रियंवर ॥ - तन मन वचन लगाना कृतिमें, है अतिचार सभी व्रतहर || राग भावसे हास्य मिश्रित भंड वचन बोलना, काय की कुचेष्टा करना, कामवर्द्धक इशारे करना वा प्रयोजन रहित अधिकता के साथ हया बकवाद करना, विना प्रयोजन मोग उपभोगकी सामग्री बढाना, प्रयोजनका अंदाज किये बिना ही कुछ करना, वा प्रयोजनरहित अधिकता के साथ मन वचन कायको प्रवचना ये पांच अनर्थदंडविरति नामक गुण व्रतके अतीचार हैं ॥ ६७ ॥ ww ४८. सत्यवादी धनदेवकी कथा । -:: जंबूद्वीप के पूर्वविदेहमें पुष्कलावती देश है उस देशकी पुंडरीक नगरीमें जिनदेव और घनदेव दो सेठ रहते थे, दोनोंने एक दफे धन कमानेके लिये परदेश जानेका ठहराव किया और यह भी तय कर लिया कि उसमें जो लाभ होगा वह आधा आधा वांट लेगे ऐसा निश्चय करके दोनों परदेशको खाना हो गए और वहां बहुतसा धन कमाकर : कुशलपूर्वक अपने घर आगए, जब फायदा हुए घनका आधा वांटने का मौका आया तब जिनदेवने घनदेव से कहा कि मैंने कब कहा था कि आधा हिस्सा लाभका: K
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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