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________________ तृतीय भाग। जोवन मलीन होत छीन होन बल है ।। आवै जरा नेरी तकै अंतक अहेरी अवै. __परभो नजीक जाय नरभो निकल है। मिलकै मिलापी जन पूछत कुशल मेरी, ऐसी दशा माहि मित्र काहेकी कुशल है ॥ १० ॥ ३०. अनंतमतीकी कथा। अंगदेशमें चंपानामकी नगरी राजा वसुवर्धन रान करता था । सी नगर में एक मियहत्त नामका शेठ था उसकी स्त्रीका नाम था अंगवती और उनकी पुत्रीका नाम अनंतमती था। सेठ प्रियदत्तने अष्टान्हिका पर्वमें धर्मकीर्ति आचार्यक पास पाठ दिनका ब्रह्मचर्य व्रत लिया। खेलसे अनंतमती को भी ब्रह्मवर्यव्रत ग्रहण करवा दिया था। जव अनंतमती विवाह योग्य बडी हो गई तो शेठने उसके विवाह करनेकी खट पट करना प्रारंभ की तव पुत्री अनंतमतीने कहा-मुझे तो आपने ब्रह्मचर्य व्रत दिलाया था! अब विवाह करनेसे क्या लाभ ? पिताने कहा किमैंने तो खेलमें ब्रह्मचर्यव्रत दिया था, सो भी पाट दिन १निकट । २ यमराजरूपी शिकारी।
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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