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________________ जैनवालवोधकको ढक देना सो पांचवां उपगृहन अंग है। इस अंगमें जिनद्रभक्त नामका शेठ प्रसिद्ध हो गया है ॥ १५ ॥ ६। स्थितिकरण अंग। सदर्शनसे सदाचरणसे, विचलित होते हो जो जन । धर्मप्रेमवश उन्हे करै फिर, सुस्थिर देकर तन मन धन ।। स्थितिकरण नामक यह छहा, अंग धर्म द्योतक प्रियवर ।। वारिषेण श्रेणिकका बेटा, ख्यात हुवा चलकर इसपर ॥१६॥ किसी कारणवश कोई धर्मात्मा सम्पग्दर्शन, सम्यकचारित्रसे चलायमान होकर भ्रष्ट होता हो तो उसको उपदे. शादि देकर धर्ममें स्थिर कर देना सो छहा स्थितिकरण नामका अंग है। इस मामें श्रेणिक राजाका पुत्र वारिपेण प्रसिद्ध हो गया है ॥ १६ ॥ ७ । वात्सल्य अंग। कपटरहित हो श्रेष्ठ भारसे, यथा योग्य आदर सत्कार । करना अपने सधर्मियोंका, सप्तमांग वात्सल्य विचार ।। इसे पालकर प्रसिद्धि पाई, मुनिवर श्रीयुत विष्णुकुमार । जिनका यश शास्त्रोंके भीतर, गाया निर्मल अपरंपार ॥१७॥ अपने सहधर्मी भाईयोंका छल कपट रहित आदर सत्कार करके गुणोंमें प्रीति करना सो. सातवां वात्सल्य अंग है। इस अंगमें विष्णुकुमार मुनि. प्रसिद्ध हो गये हैं १७
SR No.010333
Book TitleJain Bal Bodhak 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Sanstha
Publication Year
Total Pages263
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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