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________________ द्वितीय अध्याय : आदर्श महापुरुष [ ६७ आजीविक साधुओं का आचार निम्न प्रकार था - वे नग्न रहते थे तथा अपने हाथो पर भोजन करते थे । वे भोजन के लिए किसी का निमंत्रण स्वीकार नही करते थे । उनके स्थान पर लाए हुए अथवा उनके लिए तैयार किए हुए भोजन को भी वे स्वीकार नही करते थे। जिन वर्तनो मे भोजन पकाया जाता था, उन वर्तनो से अथवा अन्य वर्तनो से वे भोजन ग्रहण नही करते थे । वच्चे को साथ मे लिए हुए स्त्री से भी वे आहार ग्रहण नही करते थे । यदि कुत्ता पास में खडा हो अथवा मक्खियाँ भिनभिना रही हो तो वे भोजन नही करते थे । वे मांस, मछली तथा मद्य नही लेते थे । कुछ लोग केवल एक ही घर जाकर केवल दो ग्रास भोजन लेते थे, अन्य लोग सात घरो मे जाकर सात ग्रास ले लेते थे । वार भोजन लेते थे, तो कुछ लोग दो दिन मे सात दिन मे एक वार और कुछ लोग १५ दिन मे एक वार । कुछ लोग दिन मे एक एक वार । कुछ लोग 'आजीविक' शब्द की उत्पत्ति " आजीव' शब्द से हुई है जिसका अर्थ है जीवन अथवा व्यवसाय का एक नवीन प्रकार | मालूम पडता है कि आजीविको ने एक विशिष्ट जीवन के तरीके को अपनाया था इसलिए भी उन्होने अपने सम्प्रदाय का नाम 'आजीविक' रख लिया हो ।" यह सम्प्रदाय गोगाल से भी पहले वर्तमान था । गोगाल इस सम्प्रदाय के तीसरे नेता माने गए है । भगवती सूत्र मे लिखा है कि आजीविक सम्प्रदाय गोगाल से १७० वर्ष प्राचीन है ।" उच्छेदवाद अजित केसकम्वली उच्छेदवाद के प्रमुख व्याख्याता माने जाते है। उनका कहना था कि "दान, यज्ञ तथा होम यह सव कुछ नही है, भले-बुरे कर्मो का फल नही मिलता, न इहलोक है न परलोक, चार भूतो से मिलकर मनुष्य वना है । जव वह मरता है तो उसमे का पृथ्वी धातु पृथ्वी मे, आपोधातु पानी मे, तेजो धातु तेज मे तथा वायु धातु वायु में मिल जाता है और इन्द्रियाँ सव आकाश मे मिल जाती है । मरे हुए सनुष्य को चार आदमी अर्थी पर सुलाकर उसका गुणगान करते हुए ले जाते है । वहाँ उसकी अस्थि सफेद हो जाती है १ २ वामगदसाओ, पृ० २३८ - (डा० पी० एल० वैद्य) भगवती सूत्र, १५
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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