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________________ द्वितीय अध्याय : आदर्श महापुरुष विशिष्ट सामग्री उपलब्ध नही है, जो कि उनके जीवन पर प्रकाश डाल सके। कल्पसूत्र मे उन सभी के नाम तथा एक तीर्थकर से दूसरे तीर्थकर के निर्वाण-काल का अन्तर दिया गया है। अन्य २३ तीर्थकरो के नाम निम्न प्रकार है - १ अजित, २ सम्भव, ३ अभिणदण (अभिनन्दन), ४ सुमइ ( सुमति ), ५ पउमप्पह ( पद्मप्रभ ), ६ सुपास ( सुपार्श्व ) ७ चन्दप्पह (चन्द्रप्रभ ), ८ सुविधि, £ सीअल (गीतल ), १० सिज्जस ( श्रेयास ), ११ वासुपुज्ज (वासुपूज्य), १२ विमल, १३ अणत ( अनन्त), १४ धम्म (धर्म), १५ सन्ति ( शान्ति ), १६ कुन्थ (कुन्थु), १७. अर ( अरह ), १८ मल्ली, १६ मुणिसुव्वय (मुनिसुव्रत), २० नमि, २१ नेमि, २२ पास (पार्व), २३ बद्धमाण ( वर्द्धमान )। "नायाधम्मकहाओ" मे उन्नीसवे तीर्थकर मल्ली के जीवन का कुछ विवरण मिलता है। मल्ली के पिता का नाम कुम्भक और माता का नाम प्रभावती था। मल्ली को छोड वाकी २३ तीर्थकर पुरुष थे, केवल मल्ली स्त्री थी। वह जन्म से ही अत्यन्त रूपवती थी। उसके नयन अधिक रमणीय, ओष्ठ विम्वफल के समान सुन्दर, दात की पक्ति अत्यन्त श्वेत, कमल की तरह सुन्दर और कोमल अग तथा पूर्ण विकसित कमल के समान सुगन्धित नि श्वास था। बचपन पार कर जव राजकुमारी ने अपनी यौवनावस्था मे प्रवेश किया तो उनके सौन्दर्य पर मुग्ध होकर छह राजा मल्ली को प्राप्त करने की कामना करने लगे। जब वह सौ वर्ष में कुछ कम थी तब उसने अवधिज्ञान से उन छहो राजाओ को जान लिया। राजकुमारी मल्ली ने महल मे अपने प्रतिरूप एक सुवर्ण प्रतिमा का निर्माण कराया, जिसमे ऊपर की ओर एक ढक्कन रखा। वह प्रतिदिन ढक्कन उठाकर भोजन का एक ग्रास उसमे डाल दिया करती थी। एक दिन राजकुमारी ने छहो राजाओ को अपने घर पर निमत्रित किया। ___अवसर पाकर राजकुमारी ने राजाओ के समक्ष अपने प्रतिरूप उस सुन्दर सुवर्ण प्रतिमा का, जिसमे व ऊपर का ढक्कन उठाकर १ समवायाग, सूत्र न० २४ ।
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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