SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३०] जन अगशास्त्र के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास चार हजार प्रशस्त, उच्च कुलीन मनुष्यो के साथ अनगार अवस्था को प्राप्त किया। एक हजार वर्ष के निरन्तर तपश्चरण एव अध्यात्म चिन्तन के वाद उन्हे केवलज्ञान प्राप्त हुआ। इसके वाद हजार वर्षों तक वे प्राणिमात्र को आत्म-कल्याण का मार्ग बताने में व्यस्त रहे । अवसर्पिणी काल के सुपम-सुषमा विभाग के समाप्त होने मे जव तीन वर्ष, साढे आठ माह रह गये तव भगवान् ऋषभ ने माघ कृष्णा त्रयोदशी के दिन अष्टापद (कैलाश ) पर्वत के शिखर पर दस हजार साधुओ के साथ निर्वाण प्राप्त किया। भगवान् ऋपभ के ८४ गण तथा ८४ गणधर थे। उनके संघ मे ८४ हजार श्रमण, तीन लाख भिक्षुणी, तीन लाख पाँच हजार उपासक, पॉच लाख चऊअन हजार उपासिकाएँ, तथा अनेक चऊदहर्वधारी, अवधिनानी, मन पर्ययजानी, केवलज्ञानी, ऋद्धिधारी आदि साधु थे। भगवान् ऋषभ को मुक्ति-लाभ किए ४२००२ वर्ष ८। माह कम एक कोटाकोटि सागरोपम व्यतीत हो चुका है। - उत्तराध्ययन मे केशिमुनि तथा गौतम मुनि के सम्वाद के समय ऋषभ तथा महावीर के समय की तुलना की गई है। उसमे कहा गया है कि प्रथम तीर्थकर के समय मे मनुष्य बुद्धि मे जड होने पर भी प्रकृति के सरल थे, किन्तु अन्तिम तीर्थकर के समय के मनुष्य जड तथा प्रकृति के कुटिल है । ऋषभ प्रभु के अनुयायी पुरुषो को धर्म समझना कठिन होता था, परन्तु समझने के बाद उसे धारण करने मे समर्थ होने के कारण वे भवसागर पार उतर जाया करते थे, किन्तु अन्तिम तीर्थकर के अनुयायियो को धर्म समझना सरल है, परन्तु उनसे धर्म का पालन करवाना कठिन है ।२ अन्य तीर्थकर भगवान् ऋपभ के निर्वाण के वाद उनके द्वारा दिखाए हए मार्ग पर आत्मकल्याण तथा जनकल्याण करने का कार्य अन्य २३ तीर्थकरो ने किया। उनमे से २० तीर्थकरो के वारे मे किसी प्रकार की १ २ जैन मूत्राज् भाग १ (कल्पसूत्र), पृ० २८१-२८५ उत्तराध्ययनसूत्र, अध्ययन २३ , पृ० २५३
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy