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________________ ८] जैन अगशास्त्र के अनुसार मानव व्यक्तित्व का विकान रहा, किन्तु उनकी मृत्यु के वाद १२ अगो में से ११ अग और १० पूर्व का ही ज्ञान शेष रह गया । " माथुरीवाचना -- पट्टधर आचार्य स्कदिल के समय मे पुन १२ वर्ग का अकाल पडा और इस वार भी अगवास्त्र छिन्न-विच्छिन्न हो गए ।' आचार्य स्कदिल के सभापतित्व मे, १२ वर्ष के दुष्काल के वाद, श्रमणसघ मथुरा मे पुन एकत्रित हुआ और स्मृति के आधार पर अगशास्त्र व्यवस्थित किए गए। यह वाचना मथुरा मे हुई थी, अत यह माथुरीवाचना कहलाई । इससे इतना तो स्पष्ट है कि दूसरी वार भी दुष्काल के कारण श्रुत की दुरवस्था हो गई थी । इस वार की सकलना का श्रेय आचार्य स्कदिल को है। मुनि श्री कल्याण विजय जी ने आचार्य स्कदिल का पट्टधर काल वीर निर्वाण सम्वत् ८२७ से ८४० तक माना है, अत यह वाचना इसी बीच हुई होगी। 3 वालभी- वाचना - जव मथुरा मे वाचना हुई उसी समय वलभी मे भी नागार्जुन सूरी ने श्रमणसघ को एकत्रित करके आगमो को व्यवस्थित करने का प्रयत्न किया । वाचक नागार्जुन और एकत्रित सघ को जो जो आगम याद थे वे लिख लिए गए और विस्तृत स्थलो को पूर्वापर सवध के अनुसार ठीक करके वाचना दी गई । ४ देवधिगणिका पुस्तक लेखन - उपर्युक्त वाचनाओ को सपन्न हुए लगभग १५० वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो चुका था । उस समय पुन वलभी नगर मे देवधिगणि क्षमा श्रमण की अध्यक्षता मे श्रमणसघ एकत्रित हुआ और पूर्वोक्त दोनो वाचनाओ के समय सकलित आगमो को लिखाकर सुरक्षित करने का निश्चय किया गया ।" १ ला० इन ए० इ०, पृ० ३२ तथा जैन आगम, पृ० ११, अन्तगडदमाओ प्रस्तावना, पृ० २०, २१ नदी, चूर्णि पृ० ८ वीर निर्वाण सवत्, पृ० १०४. २ રૂ ४ ५ वही पृ० ११० तथा ला० इन ए० इ०, पृ० ३२, ३३ अतगडदसाओ, भूमिका, पृ००२
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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