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________________ सप्तम अध्याय · ब्राह्मण तथा श्रमण-संस्कृति [ २२५ विद्या, विद्याग्रहण के समय जो उत्सव मनाया जाता था, उसे उपनयन कहा गया है।' उपनयन के बाद माता-पिता अपने पुत्र को कलाचार्य (विद्यागुरु) के साथ भेज देते थे। ___ अध्ययन काल-वैदिक युग मे ब्रह्मचर्याश्रम का प्रारम्भ १२ वर्ष की अवस्था में होता था। उस युग मे वेदो का अध्ययन ही प्रधान था। अतः १२ वर्ष की अवस्था से लेकर जव तक वेदो का अध्ययन चलता रहता था, तब तक विद्यार्थी पढ़ते रहते थे। साधारण रूप से १२ वर्ष का समय ब्रह्मचारी के लिए उचित माना गया है। ___अगशास्त्र के अनुसार बालक का अध्ययन कुछ अधिक ८ वर्ष से प्रारम्भ होता था और जब तक वह कलाचार्य के निकट संपूर्ण ७२ कलाओ का अथवा कुछ कलाओ का अध्ययन नहीं कर लेता था, तव तक अध्ययन करता रहता था । । बौद्ध-संस्कृति मे कोई भी गृहस्थ अपने कुटुम्ब का परित्याग करके किसी अवस्था का होने पर भी बुद्ध, धर्म और सघ की शरण में जा कर विद्याध्ययन मे लग सकता था। __ज्ञान की प्रतिष्ठा-व्यक्तित्व के विकास की दिशा मे ज्ञान का सर्वाधिक महत्व है । मानवजीवन की सफलता उसके ज्ञान की मात्रा पर अवलवित होती है। शतपथ-ब्राह्मण में ज्ञान की प्रतिष्ठा को प्रमाणित करते हुए कहा गया है कि-"स्वाध्याय और प्रवचन से मनुष्य का चित्त एकाग्र हो जाता है, वह स्वतत्र बन जाता है, उसे नित्य धन प्राप्त होता है, वह सुख से सोता है, वह अपना परम चिकित्सक हो जाता है, वह इन्द्रियो पर संयम कर लेता है, उसकी प्रजा बढ जाती है और उसे यश मिलता है।" जैनागमो मे भी ज्ञान की महिमा स्वीकार की गई है। शिष्य ने पूछा-"भंते । ज्ञानसम्पन्नता से जीव को क्या लाभ है?" गुरु ने कहा १. भगवती, सूत्र ११, ११, ४२६, पृ० ६६६, (अभयदेववृत्ति)। २ छान्दोग्य उपनिपद्, ६, १, १-२ । ३. गोपथ ब्राह्मण, २,५। ४. नायाधम्मकहाओ, १,२६, पृ० २१ । ५. शतपथ ब्राह्मण, ११,५, ७, १-५ ।
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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