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________________ २०२ ] जैन-अगशारन के अनुसार मानव-व्यक्तित्व का विकास पैर सखे वृक्ष की छाल, लकडी की खडा अथवा जीर्ण जूते के समान थे। उनके पर केवल हड्डी, चमडा तथा नसी से पहिचाने जाते थे, न कि मास-रुधिर गे । उनके पंगे की अंगुलियां धुप मे मुरलाई हुई, मूग अथवा उडद की फलियो के समान थी। अनगार धन्य की जंघाए काक तथा ढंक पक्षियो की जघाओ के समान निर्मास हो गई थी। उनके घुटने काक तथा ढंक पक्षियों के संविस्थानो के समान थे। उनके ऊ धूप मे मुरझाए हुए प्रियंगु, बदरी, गल्यकी, तथा शाल्मली वृक्ष के प्रवाल के समान थे । धन्य अनगार का कटिप्रदेश ऊँट अथवा बढे बल के पैर के समान था । उनका उदर मूखी मशक, अथवा नने भूनने के पात्र के समान था। उनकी पार्श्व-अस्थियां ऐसे प्रतीत होती थी, जैसे वह कई दर्पणो, पाणनामक पात्रो अथवा स्थाणुओ की पक्ति हो । उनका पृष्ठभाग ऐसा मालूम होता था, जैसे कान के आभूपणो, गोल पापाणों अथवा लाख के बने हुए खिलौनो की पंक्ति हो। उनका उर स्थल बाँस के पंखे, ताड़ के पंखे अथका गाय के चरने के कुण्ड के अधोनाग के समान था । धन्य अनगार की भुजाएँ, मांस तया रुधिर की कमी से इस प्रकार सूख गई थी, जैसे शमी, वहाय और अगस्तिक वृक्ष की फलियाँ धूप मे सूख जाती है। उनके हाथ सूखे गोवर अथवा बड या पलाश के सूखे पत्तो के समान थे। उनके हाथो की उगलियाँ कलाय, मग तथा उड़द की सूखी फलियो के समान थीं। धन्य अनगार की ग्रीवा मास और रुधिर के अभाव से इस तरह दिखाई देती थी, जैसी सुराई, कमण्डलु अथवा किसी ऊँचे मुख वाले पात्र की ग्रीवा हो । उनकी ठोडी-चिवुक भी तुम्वे या हकुव का फल अथवा आम की गुठली जैसा दिखता था | उनके ओठ सूखी जोक अथवा श्लेष्म या मेहदी की गोली के समान प्रभाहीन थे। उनकी जीभ पलाश अथवा वटवृक्ष के सूखे पत्ते के समान थी । अनगार धन्ना की नासिका आम, आमलक या मातुलिग की धूप मे सुखाई गई अतिसूक्ष्म फाक के समान निर्मास दिखाई पड़ती थी। उनकी ऑखे वीणा के छिद्र अथवा प्रभातकालीन तारे के समान निष्प्रभ मालूम पड़ती थी। उनके कान सूख कर मुरझाए हुए मूली, चिरभटी अथवा करेले के छिलके के समान निर्मा स थे । उनका सिर धूप मे सूखे हुए कोमल तुम्वक, आलू अथवा सेफालक के समान प्रभाहीन प्रतीत होता था।"
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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