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________________ तृतीय अध्याय : जैन-तत्त्वज्ञान [१०५ [चूड़ी] के समान है। जम्बू द्वीप लवणसमुद्र से वेष्टित है, लवणसमुद्र घातकीखण्ड-द्वीप से वेष्टित है, धातकीखण्ड-द्वीप कालोदधिसमुद्र से, कालोदधिसमुद्र पुष्करवर द्वीप से और पुष्करवरद्वीप पुष्करोदधि से वेष्टित है। यही क्रम स्वयंभूरमणसमुद्र-पर्यन्त है। जम्बूद्वीप-जम्बूद्वीप सबसे पहला द्वीप है और समस्त द्वीप-समुद्रो के बीच मे स्थित है । इसका विस्तार एक लाख योजन प्रमाण है ।। इसके बीच मे मेरुपर्वत की ऊँचाई एक लाख योजन है। ___जम्बूद्वीप मे सात क्षेत्र हैं, जो वर्ष कहलाते है। इनमे पहला भरतक्षेत्र है जो दक्षिण की ओर है। भरत से उत्तर की ओर हैमवत, हैमवत के उत्तर मे हरि, हरि के उत्तर मे विदेह, विदेह के उत्तर मे रम्यक, रम्यक के उत्तर मे हैरण्यवत और हैरण्यवत के उत्तर मे ऐरावत क्षेत्र है। सातों क्षेत्रों को एक दूसरे से अलग करने वाले उनके मध्य छह पर्वत है, जो वर्षधर कहलाते है । ये सभी पर्वत पूर्व-पश्चिम लम्बे है। भरत और हैमवत के बीच हिमवान् पर्वत है । हैमवत और हरि का विभाजक महाहिमवान है। हरि और विदेह को जुदा करने वाला निषध पर्वत है। विदेह और रम्यक को भिन्न करने वाला नील पर्वत है। रम्यक और हैरण्यवत को विभक्त करने वाला रुक्मी पर्वत है । हैरण्यवत और ऐरावत का विभाग करने वाला शिखरी पर्वत है। ____ जम्बूद्वीप मे सात महानदियाँ है जो कि पूर्वाभिमुख होकर लवणसमुद्र मे गिरती है । उनके नाम इस प्रकार है-(१) गंगा, (२) रोहिता, (३) हरी, (४) सीता, (५) नरकान्ता, (६) सुवर्णकूला और (७) रक्ता। इसी प्रकार अन्य सात नदियाँ भी पश्चिमाभिमुख होकर लवणसमुद्र मे गिरती है। उनके नाम इस प्रकार है-(१) सिधु, (२) रोहितास्या, (३) हरिकान्ता (४) सीतोदा, (५) नारीकान्ता (६) रुप्यकूला तथा (७) रक्तवती। जम्बूद्वीप की अपेक्षा धातकीखडद्वीप मे मेरु, वर्ष, वर्षधर तथा नदियो की संख्या दूनी है। मेरु आदि की जो सख्या धातकीखड १. स्थानांग, १६३. २. समवायांग, १. ३. स्थानांग, ८६-६२, ५५५ ४. वही, ५५५
SR No.010330
Book TitleJain Angashastra ke Anusar Manav Vyaktitva ka Vikas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHarindrabhushan Jain
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages275
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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