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________________ छत्तीसइमं अज्झयणं २६३ संखिज्जकालमुक्कोसं अन्तोमहत्तं जहन्नयं । चउरिन्दियकायठिई तं कायं तु अमुचओ ॥१५३॥ अणन्तकालमुक्कोसं ' अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । . चरिदिय जीवाणं अन्तरेयं वियाहियं ।।१५४॥ एएसिं वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥१५५।। पंचिन्दिया उ जे जीवा चउविवहा ते वियाहिया। नेरइयतिरिक्खा य मणुया देवा य आहिया ।।१५६।। नेरइया सत्तविहा पुढवीसु सत्तसू भवे । रयणाभ सक्कराभा . वालुयाभा य आहिया ॥१५७।। पंकाभा धूमाभा तमा तमतमा तहा । इइ नेरइया एए सत्तहा परिकित्तिया ॥१५८।। लोगस्स एगदेसम्मि ते. सव्वे उ वियाहिया। एत्तो काल विभागं तु वुच्छं तेसिं . चउन्विहं ।।१५।। संतई पप्पऽणाईया अपज्जवसिया वि य । ठिई पडुच्च साईया. सपज्जवसिया. वि य ।।१६।। सागरोवममेगं तु उक्कोसेण वियाहिया। .. पढमाए जहन्नेणं . दसवाससहस्सिया ॥१६॥ तिण्णेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । ..... दोच्चाए जहन्नेणं एगं तु. सागरोवमं ।।१६२।। सत्तेव सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया। तइयाए जहन्नेणं तिण्णेव उ सागरोवमा ॥१६३॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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