SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६४ उत्तरायणं दस सागरोवमा ऊ. उक्कोसेण वियाहिया। च उत्थीए जहन्नेणं सत्तेव उ सागरोवमा ।।१६४|| सत्तरस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । . पंचमाए जहन्नेणं दस चेव उ सागरोवमा ॥१६५।। वावीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । . छट्ठीए जहन्नेणं सत्तरस सागरोवमा ॥१६६।। तेत्तीस सागरा ऊ उक्कोसेण वियाहिया । सत्तमाए जहन्नेणं वावीसं सागरोवमा ।।१६७।। जा चेव उ आउठिई नेरइयाणं वियाहिया। सा तेसिं कायठिई जहन्नुक्कोसिया भवे ॥१६८।। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमहत्तं जहन्नयं । विजदमि सए काए नेरइयाणं तु अन्तरं ।।१६।। एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो ॥१७०॥ पंचिन्दियतिरिक्खाओ दुविहा ते वियाहिया। सम्मुच्छिमतिरिक्खाओ गम्भवक्कन्तिया . तहा ।।१७१।। विहावि ते भवे तिविहा जलयरा थलयरा तहा। खयरा य वोद्धव्वा तेसिं भेए सुणेह मे ॥१७२।। मच्छा य कच्छभा य गाहा य मगरा तहा । सुसुमारा य वोद्धव्वा पंचहा जलयराहिया ।।१७३।। लोएगदेसे ते सव्वे न सव्वत्थ वियाहिया । एत्तो कालविभागं तु वुच्छं तेसिं चउन्विहं ।।१७४॥
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy