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________________ २६२ उत्तरजतयणं एगूणपण्णऽहोरत्ता उक्कोसेण वियाहिया । तेइन्दियआउठिई अन्तोमुहत्तं जहन्निया ।।१४२।। संखिज्जकालमुक्कोसं अन्तोमुहत्तं जहन्नयं । तेइन्दियकायठिई तं कायं तु अमुचओ ।।१४३।। अणन्तकालमुक्कोसं अन्तोमूहत्तं जहन्नयं । तेइन्दियजीवाणं अन्तरेयं वियाहियं ।।१४४।। एएसि वण्णओ चेव गन्धओ रसफासओ। संठाणादेसओ वावि विहाणाइं सहस्ससो।।१४।। चउरिन्दिया उ जे जीवा दुविहा ते पकित्तिया । पज्जत्तमपज्जत्ता तेसिं भेए सुणेह मे ॥१४६।। अन्धिया पोत्तिया चेव मच्छिया मसगा तहा। भमरे कोडपयंगे य ढिकुणे कुकुर्ण तहा ।।१४७॥ कुक्कुडे सिंगिरीडी य नन्दावत्ते य विछिए। डोले भिंगारी य विरली अच्छिवेहए ॥१४८॥ अच्छिले माहए अच्छिरोडए विचित्ते चित्तपत्तए। ओहिंजलिया जलकारी य नीया तन्तवगाविय ॥१४६।। इइ चउरिन्दिया एए ऽणेगहा एवमायओ। लोगस्स एग देसम्मि ते सव्वे परिकित्तिया ॥१५०॥ संतई पप्पडणाईया अपज्जवसिया वि य। ठिइं पड़च्च साईया सपज्जवसिया वि य ॥१५१।। छच्चेव य मासा उ उक्कोसेण वियाहिया। चउरिन्दियबाउठिई अन्तोमुहुत्तं जहन्निया ।।१५२।।
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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