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________________ १३२ उत्तरायणं जहा य अग्गी अरणीउऽसन्तो ___ खीरे घयं तेल्लमहा तिलेसु । एमेव जाया ! सरीरंसि · सत्ता संमुच्छई नासइ नावचिट्ठ ॥ १८ ।। नो इन्दियग्गेज्झ अमुत्तभावा अमुत्तभावा वि य होइ निच्चो। अज्झत्थहे निययऽस्स वन्धो संसारहेउं च वयन्ति वन्धं ।। १६॥ जहा वयं धम्ममजाणमाणा पावं पुरा कम्ममकासि मोहा । ओरुज्झमाणा परिरक्खियन्ता तं नेव भुज्जो वि समायरामो ।। २० ॥ अभाहयंमि लोगंमि सव्वओ परिवारिए। अमोहाहिं पडन्तीहिं गिहंसि न रइं लभे ॥ २१ ॥ केण अभाहओ लोगो ? केण वा परिवारिओ। का वा अमोहा वुत्ता? जाया ! चितावरो हुमि ।। २२ ।। मच्चुणाऽभाहओ लोगो जराए परिवारिओ। अमोहा रयणी वुत्ता एवं ताय ! वियाणह ।। २३ ।। जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई । अहम्म कुणमााणस्स अफला जन्ति राइओ ॥ २४ ॥ जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई। धम्मं च कुणमाणस्स सफला जन्ति राइओ।। २५ ।।
SR No.010329
Book TitleJainagam Pathmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAkhileshmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1974
Total Pages383
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size11 MB
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