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________________ (१३) ३८ - किसी कारण से टिकट न ले पाया हो तो गार्डको कहकर बैठ जाना चाहिये। आगेकी स्टेशन या गार्डसे टिकट लेलेना चाहिये । ३९ - किसीके पास आगे-पीछेकी स्टेशनका टिकट हो, जहां पर उतरना हो वहां पर स्टेशन बाबूको आगेका किराया चुका देना चाहिये । इसमें कुछ भी हर्ज नहीं है । ४० - अगर अपने पास पेसीअर गाड़ीका टिकट हो । और डाक या एक्सप्रेस में जाना हो तो बाबूसे टिकट ठीक करा लें। ४१ - भूलसे या रात्रिके सोनेसे आगेकी स्टेशनपर चला जाय तो बाबूको कहकर लौटती गाड़ीसे वापिस आना चाहिये । मगर जिस स्टेशन से लौटकर आवोगे वहांसे टिकट लेना होगा । ४२ - तीर्थ के मैनेजर के काम में कुछ त्रुटि मालूम हो तो विझीटबुक में बता देना चाहिये ताकि वह सुधार दी जासके । ४३ - जहां पर पाठशाला, अनाथालय आदि हो वहांपर दान अवश्य देना चाहिये | दान देकर रसीद हरजगह से लेलेनी चाहिये। ४४ - इस पुस्तक में दिये गये हिन्दुओंके तीर्थं अवश्य देखना चाहिये, पुण्यबंधको या घर्माभिलाषासे नहीं । व अपने बड़े तीर्थों में ४ - ६ दिन रहकर सुखसे वंदना करना चाहिये । ४५ - अगर अपनी स्त्रियां रजःस्वला होजांय तो घबड़ाना नहीं चाहिये । न पापका उदय समझना चाहिये । यह उनका स्वाभाविक धर्म है । शुद्धिके बाद यात्रा करनी चाहिये । ४६ - तीर्थक्षेत्रों में रहकर धर्मध्यानपूर्वक समय विताना चाहिये । गप्पों या ताश में नष्ट नहीं करना। अगर कोई काम नहीं होवे तो शास्त्रस्वाध्याय करना चाहिये ।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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