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________________ २१.] जैन तीर्थयात्रादर्शक.। है। पूछ करके दर्शन करना चाहिये । फिर यहांसे सब मामान लेकर बैलगाड़ी या मोटर में पांच मील बावनगजानी (चूलगिरि) जाना चाहिये । बीचमें पहाड़ो रास्ता ठीक है, कुछ डर नहीं है। सैकड़ों आदमी आते जाते रहते हैं। पर रास्ता भूलना नहीं चाहिये। यहां १ रास्ता पहाड़ी सीघा ३ मीलका भी है।। (३६०) श्री बावनगजाजी (चूलगिरि सिद्धक्षेत्र) पहाड़की तलेटीमें २ धर्मशाला, १ कुआ, ४ कुंड और कुल १६ मंदिर तथा बहुत प्रतिमा हैं। आगे १ मील मागे रास्तेमें जानेपर १ मंदिरको आदि लेकर २ मंदिर हैं जहां पहाड़में खुदी हुई बहुतसी प्रतिमा हैं । श्री बावनगजा (नादिनाथ ) स्वामीकी खड़ासन प्रतिमा ५२ गन ऊंची है । वहां ही एक ९ गन ऊँची श्रीनेमिनाथकी प्रतिमा है। यह प्रतिमा मंदिर बनते समय नमीनसे निकली थी। फिर पहाइपर जाना चाहिये । १ मोलका चढ़ाव है, १ मंदिर है। चूलेश्वर गिरिपर कोट व दरवाना है। भीतर १ मंदिर और बहुत प्राचीन खंडित प्रतिमा हैं। आगे बड़ा मंदिर है, उनकी परिक्रमाके बालों में बहुत प्रतिमा है । मंदिरके पीछे गणपरदेवकी मूर्ति है। मंदिरमें बहुत प्राचीन प्रतिमा विराजमान हैं। भीतर इन्द्रनीत व कुम्भकर्णकी चरणपादुका मनोहर हैं। इस पहाइसे रावणका भाई कुंभकर्ण और पुत्र इन्द्रनीतादि मुनि मोक्ष पपरे हैं। पहाड़से रेवा नदी सामने दीखती है। (३६१) रेवा नदी। . इसको अन्यमती पवित्र मानते हैं, पूनते व परिक्रमा देते मेनायमसे यह नर्मदा नदी अपने भावों द्वारा ही मान्य हैं।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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