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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक | [ १०५ रमें सड़क, तालाब, कुआ, बगीचा इत्यादि हैं। फिर पुल बांधकर ऊपर मकान, तालावादि हैं। फिर ऊपर पुल बांधकर शहर है। उसके ऊपर दो दो तीनर मंजलके मकान हैं। और करोड़ों की लागतकी मसजिद आदि हैं । गधासा भैंसासा सेठ की हवेली, बादशाही दरबार देखनेयोग्य है । एक जगह मांडु महादेवका स्थान है। पहाड़से बहुत नीचे उतरनेके बाद बड़े२ ऊँचे दरवाजे हैं, नीचे कुंड है, पहाड़से पानी गिरता है। ऊपर उर्दू, फारसीका लेख, नीचे पाताल जैसे गढ़ा इत्यादि रचना देखने योग्य है । १ जैन धर्मशाला, १ मंदिर में प्राचीन प्रतिमा हैं । पहाड़ के रास्तेमें जैन शिलालेख एक बगलके खंडहर में हैं, भीतर प्रतिमा नहीं है।पर मंदिर अपूर्व है । लौटकर धर्मपुरी आवे। फिर राजघाट माजावे । राजघाट बड़वानी चला जाना चाहिये। बड़वानी आनेके बार रास्ता हैं - १ धुलिया खानदेशसे, २ बडवाहा महेश्वर होकर, १ मऊ की छावनी से सीधा, ४ घार, कुकशी, चीकखदा होकर | सब हाल उपर किखा जाचुका है। यह शहर राभा सा का सुन्दर रमणीक है, माक व्यापार सब तरहका होता है। वस्तु फळ, फूल आदि सब सामान महपिर ताजा पैदा होता है। हर समय हर तरहके पदार्थ मिलते हैं। परश्मे पानीका कुमा है । १ दि० जैन धर्मशाला व बोडिंग शहरमें है । सो पूछकर महार ठहरना चाहिये। फिर शहरमे १ मंदिर व सरस्वती भवन है। सेठ भीकाजी चांदुलाजी आदि २० पर दिοमेनियोंके हैं परधर्मशाला पास एक महामगे १ प्राचीन दि० केक मेदिर व १ प्रतिमा भी है। उसका बड़ा दोर
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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