SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १६८] जैन तीर्थयात्रादर्शक । एक मंदिर चौवीसीका है। जिसमें सैकड़ों प्रतिमा हैं । यहांपर छोटी२ प्रतिमा स्फटिकमणिकी हैं। कुल मंदिर २३ हैं । उनकी कीमत दो करोड़ रुपयासे अधिक है । इस दक्षिण प्रांत के मंदिरों व मूर्तियों की रचना करानेवालोंको धन्य है । आनकल बड़े २ शहरोंके सेठ भी गोम्मटस्वामी सरीखी प्रतिमाका निर्माण नहीं करा सकते हैं। यहांका दर्शन करनेसे आनंद वरसता है। यहांका दर्शन करके मोटरसे तीर्थली जावे। टिकटका ४) लगता है। बीचमें वरांग उतर पड़े। फिर वहांका दर्शन करके दूमरे टायमसे जाना चाहिये । मोटर दिनमें तीन वार माती जाती है। (२७८) श्री वरांग क्षेत्र । यह ग्राम छोटा है, चारों तरफ कोट खिचा हुआ है । एक धर्मशाला, कुआ, मकान व विशाल मंदिर है। उममें अंदाना २०० छोटी बड़ी प्रतिमा हैं। दो तीन प्रतिमा श्वेत पाषाणकी हैं जो कांच सरीखी चमकती हैं । एक प्रतिमा स्फटिकमणिकी है । दर्शन करना चाहिये। इस मंदिरके सामनेके तालावमें कमलफूल रहने हैं। बीचमें मंदिर है। उसके चारों तरफ चारों दिशामें १० प्रतिमा शांत मुद्रायुक्त हैं । पावापुर सरीखी रमणीकता है । इस मंदिरके मालिक पद्मावती हुमचवाले भट्टारकनी हैं। यहांपर भण्डार लिया जाता है। मुनीम पुजारी रहता है। भंडार देना चाहिये। फिर मंदिरकी उत्तर तरफ एक मानस्तंभ है। जंगल और बड़े। पहाड़ हैं। यहांकी यात्रा करके मोटरमें सवार होकर सोमेश्वर उतर पड़े। इघरसे मानेवाला कारफलकी यात्रा करके मूलबद्री चला भावे ।
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy