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________________ जैन तीर्थयात्रादर्शक। [१६७ पहिले नंबरके राम्ने जाना चाहिये । ऐसा करनेसे कोई भी यात्रा नहीं छटेगी। और खर्च भी कम पड़ेगा। (२७७) श्री कारकल क्षेत्र (गोमटस्वामी)। कारकलमें दिनैन धर्मशाला, या भट्टारकनीके मठमें ठहरना चाहिये। यहांसे शहर माघ मील पड़ता है। शहर अच्छा है। भट्टारकजीके मठके पासमें धर्मशाला, पाठशाला, कुआ, तालाब हैं। सुन्दर रमणीक चीजें हैं। धर्मशालाकी उत्तर दिशामें लाग्वोंकी कीमतका चोरासा पहाड़ पर १ मंदिर है। इसमें वृषभको आदि लेकर वासुपूज्य पयंत १२ प्रतिमा चारों दिशामें १०-१० हाथ ऊँची स्वङ्गासन हैं। छोटी-बड़ी और प्रतिमा भी हैं। नीचे ४ मंदिर हैं । दक्षिण दिशाके पहाइपर कोट विचा हुआ है । पहाडका चढ़ाव सरल है। ऊपर मानम्थंभ, और बगल में छोटे दो मंदिर हैं। बीचमें १८ गन ( ३५ हाथ ) ऊंची शांत मुद्रा गोम्मटम्वामीकी प्रतिमा है। दर्शन करके उतरकर नीचे माजाय । फिर भागे पश्चिमकी तरफ चले, तो बीचमें चंद्रप्रभुका चैत्यालय है। भागे तालाबके बीच मंदिर है। जिसमें नीचे चार दिशामें ४ प्रतिमा हैं। ऊपर मंनिलमें १ प्रतिमा है । भागे फिर नानेपर ४ मंदिर राम्ने में पड़ने हैं। आगे जानेपर ६ मंदिर बड़े भारी हैं। उनमें १० जगह दर्शन हैं, एक सामने बहुत बड़ा मंदिर है, सामने मानस्तंभ है । मंदिरमें एक बड़ी भारी विशाल नेमिनाथ स्वामीकी प्रतिमा है। और भी बहुत प्रतिमा हैं। एक प्रतिमा स्फटिकमणिकी है । ऊपर मंजिलमें भी प्रतिमा है। बगलमें दो मंदिर। मिसमें दो प्रतिमा धातु पाषाणकी हैं। फिर इस मंदिरके बाहर
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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