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________________ १६६] जैन तीर्थयात्रादर्शक । करोड़ोंकी जीविका देगये थे। वह अंगरेजोंने लेली। सिर्फ मंदिरोंकी पूजा प्रच्छालके लिये १८००) रुपया वार्षिक मिलता है । इतने में इतने बड़े भारी मंदिरोंका खर्च कैसे चल सकता है ? जीर्णोद्धार भी कैसे होसकता है ? यह बड़े खेदकी बात है। यहांके पंचोंने इन मंदिरोंका पूरा इंतजाम कर रखा है । उनको भी धन्यवाद है जो कि करोड़ोंकी जायदादकी रक्षा करते हैं। अब यहांसे ॥) सवारी देकर मोटरसे १२ मीलपर वेणुर क्षेत्र जाना चाहिये। (२७६ ) श्री बेणुर क्षेत्र-(गोम्मटस्वामी) यहां पर कोटसे घिरा हुआ १ मंदिर है । उसमें हँसमुख शांत मुद्रा २५ हाथ ऊंची श्री गोमट्टस्वामीकी प्रतिमा है। दरवाजे के पास दो मंदिर छोटे हैं । भागे फिर एक मंदिर बड़ा है। उसमें ठहरनेको दो कोठरी व धर्मशाला बाहर है। थोड़ी दूर १ मानस्थंभ है। ऊपर-नीचे स्थंभमें प्रतिमा बिराजमान हैं। सामने तीन मंदिर हैं। १-चौवीसीका, २-आदिनाथस्वामीका, ३चन्द्रप्रभुस्वामीका । एक मंदिरके ऊपर भी दर्शन है। यह मंदिर और गोमट्टस्वामीको मुर्ति आज लक्षोंकी कीमतकी है। ग्राम छोटासा है। तालाव-नदी है। यहांका दर्शन करके फिर मोटरसे मूलबद्री भाजावे। फिर " कारकल" मोटरसे ॥) सवारी देकर १० मील पर जाना चाहिये ।। सुचना-रायचूर आदिका हाल ऊपर लिखा है। यहांसे अब कारकल, वरांग, तीर्थली, सीमोगा होकर वीरूर जाकर रास्ता मिलता है । सो यात्रियोंको पहिले नंबर के रास्ता आनेवालोंको दूसरे नंबरके रास्तेसे जाना चाहिये । दूसरे नंबरके रास्तेसे मानेवालोंको
SR No.010324
Book TitleJain Tirth Yatra Darshak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGebilal Bramhachari, Guljarilal Bramhachari
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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