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________________ ४६ जन-दर्शन इसी प्रकार आकार आदि के विषय में भी समझ लेना चाहिए । इस प्रकार के गुणों को लोक की भाषा में (Primary qualities) या (Objective qualities) कहते हैं। बर्कले ने लोक की इस धारणा का खण्डन किया । उसने स्पष्ट शब्दों में कहा कि वस्तु में इस प्रकार का भेद डालना निरी भ्रान्तता है। वास्तव में पदार्थ के सारे ही गुण आत्मगत होते हैं। हम यह नहीं कह सकते कि अमुक-गुण तो वस्तु के अपने गुण हैं और अमुक गुण हमारी कल्पना द्वारा वस्तु पर थोपे गए हैं । हमें तथाकथित वस्तुगत धर्म का ज्ञान भी ठीक उसी प्रकार होता है जिस प्रकार कि आत्मगत धर्म का । ऐसी स्थिति में हम यह कैसे कह सकते हैं कि अमुक धर्म तो वस्तु का अपना धर्म है और अमुक धर्म ज्ञाता द्वारा आरोपित है। वास्तव में वस्तु में ऐसा कोई धर्म नहीं है जो आत्मगत न हो। दूसरे शब्दों में कहा जाय तो सारी वस्तु ही आत्मगत है क्योंकि विविध धर्मों या गुरणों से अतिरिक्त या भिन्न वस्तु अपने आप में कुछ नहीं है । तात्पर्य यह है कि वर्कले के मतानुसार ज्ञाता स्वयं ही वस्तु का निर्माण करता है। ज्ञाता के दर्शन या ज्ञान से भिन्न कोई बाह्य पदार्थ नहीं होता । ज्ञाता का ज्ञान खुद ही बाह्य पदार्थ का आकार धारण करता है और वह ऐसा प्रतिभासित होता है मानों अपने से भिन्न कोई बाह्य पदार्थ हो । वास्तव में जितने भी बाह्य पदार्थ किसी को दिखाई देते हैं-किसी के अनुभव में आते हैं, सव अनुभवकर्ता के अपने दिमाग की उपज है-ज्ञाता की अपनी विचारधारा की कृति है। बर्कले की इस धारणा का स्पष्ट मन्तव्य यह है कि व्यक्ति की विचारधारा ही बाह्य पदार्थों की सत्ता का निर्माण करती है। जगत् अपने आप में कुछ नहीं है । व्यक्ति स्वयं जगत् का निर्माण करता है और स्वयं मिटाता है । वास्तव में व्यक्ति का चित्त या. मन (Mind) ही अन्तिम तत्त्व है। सारा संसार उसी का खेल है । बर्कले के इस आदर्शवाद को आत्मगत आदर्शवाद या स्वगत आदर्शवाद(Subjective Idealism)कह सकते हैं। : कान्ट का आदर्शवाद दूसरे ही प्रकार का है। उसकी धारणा के अनुसार हमें वास्तविक पदार्थ का ज्ञान हो ही नहीं सकता। हमारा जितना भी ज्ञान या अनुभव है वह दृश्यजगत् तक ही सीमित है । यह कैसे ? इसका स्पष्टीकरण करते हुए कान्ट. कहता है कि हमारे ज्ञान की
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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