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________________ जैन-दर्शन ( दो या तीन ) आत्माएँ हैं और (दो या तीन ) ग्रात्माएँ नहीं हैं (सद्भावपर्यायों में यदि दो देश लेने हों तो असद्भावपर्यायों में तीन देश लेने चाहिए और सद्भावपर्यायों में यदि तीन देश लेने हों तो सद्भावपर्यायों में दो देश लेने चाहिए ) । ८,६,१० - चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के समान हैं । ११ - दो या तीन देश प्रदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से और दो या तीन देश प्रदिष्ट हैं तदुभयपर्यायों से, अतएव पंचप्रदेशी स्कंन्ध ( दो या तीन ) ग्रात्माएँ हैं और (दो या तीन ) अवक्तव्य हैं । १२, १३, १४ - चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के समान समझना चाहिए । १५ - दो या तीन देश प्रदिष्ट हैं तदुभयपर्यायों से, और दो या तीन देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से श्रतएव पंच- प्रदेशी स्कन्ध ( दो यातीन) आत्माएँ नहीं हैं और (दो या तीन ) अवक्तव्य हैं । १६ - चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के समान है । U ● ३०६ १७- एक देश सद्भावपर्यायों से आादिष्ट है, एक देश असद्भाव पर्यायों से आदिष्ट है और अनेक देश तदुभयपर्यायों से श्रादिष्ट हैं अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है, आत्मा नहीं है और (अनेक) अवक्तव्य हैं | १८ - एक देश सद्भावपर्यायों से प्रदिष्ट है, अनेक देश असद्भावपर्यायों से आदिष्ट हैं, और एकदेश तदुभय पर्यायों से प्रदिष्ट है, अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है, ( अनेक ) आत्माएं नहीं हैं और वक्तव्य है । १६ - एक देश सद्भावपर्यायों से श्रदिष्ट है, दो देश असद्भावपर्यायों से प्रदिष्ट हैं, और दो देश तदुभय पर्यायों से प्रदिष्ट हैं, अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है, (दो) आत्माएँ नहीं हैं और (दो) अवक्तव्य हैं ! २०- अनेक देश श्रादिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से, एक देश प्रदिष्ट है सद्भावपर्यायों से, और एक देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से, अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध ( अनेक ) आत्माएँ हैं, आत्मा नहीं है और प्रवक्तव्य है । २१- दो देश प्रदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से, एक देश आदिष्ट
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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