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________________ स्थाद्वाद ३०७ है असद्भावपर्यायों से, और दो देश आदिष्ट हैं तदुभयपर्यायों से, अत: (दो) आत्माएँ हैं, अात्मा नहीं है और (दो) अवक्तव्य हैं । २२--दो देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से, दो देश आदिष्ट हैं असद्भावपर्यायों से, और एक देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से, अतः पंचप्रदेशी स्कन्ध (दो) आत्माएँ हैं, (दो) आत्माएँ नहीं हैं और अवक्तव्य है। इसी प्रकार षट्प्रदेशी स्कन्ध के २३ भंग किए गए हैं । २२ का पूर्ववत् निर्देश किया गया है और २३ वाँ भंग इस प्रकार है दो देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट हैं, दो देश असद्भावपर्यायों से अादिष्ट हैं और दो देश तदुभय पर्यायों से आदिष्ट हैं, अतएव पट प्रदेशी स्कन्ध (दो) आत्माएँ हैं, (दो) आत्माएं नहीं हैं और. (दो) अवक्तव्य हैं। उपर्युक्त भंगों को देखने से हम इस निर्णय पर पहुँचते हैं कि स्याद्वाद से फलित होने वाली सप्तभंगी बाद के प्राचार्यों की सूझ नहीं है। यह आगमों में मिलती है और वह भी अपने प्रभेदों के साथ । २३ भंगों तक का विकास भगवती सूत्र के उपर्युक्त सूत्र में मिलता है । यह तो एक दिग्दर्शन मात्र है । नाना प्रकार के विकल्पों के आधार पर अनेक भंगों का निर्माण किया जा सकता है, यह प्रवक्ता के बुद्धिकौशल पर निर्भर है। इन सब भंगों का निचोड़ सात भंग हैं। अस्ति, नास्ति, अनुभय (अवक्तव्य), उभय (अस्तिनास्ति), अस्ति-अवक्तव्य, नास्ति-अवक्तव्य, अस्ति-नास्ति-अवक्तव्य । इन सात में भी प्रथम चार मुख्य हैं-अस्ति, नास्ति, अनुभय और उभय । इन चार में भी दो मौलिक हैं-अस्ति और नास्ति । तत्त्व के मुख्य रूप से दो पहलू हैं। दोनों परस्पराश्रित हैं। 'अस्ति' 'नास्ति' पूर्वकं है और 'नास्ति' 'अस्ति' पूर्वक । वाद के दार्शनिकों 'ने सात भंगों पर ही विशेष भार दिया और स्याद्वाद और . सप्तभंगी एकार्थक हो गए। भंग सात ही क्यों होते हैं, अधिक या कम क्यों १-भगवतीसूत्र, १२।१०:४६६
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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