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________________ स्याद्वाद ३०५ १४-अनेक देश आदिष्ट हैं असद्भावपर्यायों से और एक देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से अतएव चतुष्प्रदेशी स्कन्ध (अनेक) आत्माएँ नहीं है और प्रवक्तव्य है। १५-दो देश आदिष्ट हैं असद्भावपर्यायों से और दो देश आदिष्ट हैं तदुभय पर्यायों से, अतएव चतुष्प्रदेशी स्कन्ध (दो) आत्माएं नहीं हैं और (दो) अवक्तव्य हैं। १६-एक देश सद्भावपर्यायों से प्रादिष्ट है, एक देश असद्भाव पर्यायों से प्रादिष्ट है और एक देश तदुभयपर्यायों से आदिष्ट है, इसलिए चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अात्मा है, नहीं है और अवक्तव्य है। १७-एक देश सद्भावपर्यायों से प्रादिष्ट है, एक देश असद्भाव पर्यायों से आदिष्ट है और दो देश तदुभय पर्यायों से आदिष्ट हैं, इसलिए चतुष्प्रदेशी स्कन्ध प्रात्मा है, नहीं है और (दो) प्रवक्तव्य हैं। १८-एक देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट है, दो देश असद्भाव पर्यायों से प्रादिष्ट हैं और एक देश तदुभय पर्यायों से प्रादिष्ट है, इसलिए चतुष्प्रदेश स्कन्ध आत्मा है, (दो) नहीं हैं और प्रवक्तव्य है। १६- -दो देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट है, एक देश असद्भाव पर्यायों से श्रादिष्ट है, और एक देश तदुभयपर्यायों से आदिष्ट है, इसलिए चतुष्प्रदेश स्कन्ध (दो) आत्माएँ हैं, नहीं है और अवक्तव्य है। चतुष्प्रदेशी स्कन्ध का १६ भंगों में उत्तर देकर पंचप्रदेशी स्कन्ध के विषय में २२ भंगों में उत्तर देते हैं १--पंचप्रदेशी स्कन्ध आत्मा के आदेश से आत्मा है। २-पंचप्रदेशी स्कन्ध पर के आदेश से प्रात्मा नहीं है। ३-पंचप्रदेशी स्कन्ध तदुभय के आदेश से प्रवक्तव्य है। ४,५,६-चतुष्प्रदेशी स्कन्ध के समान हैं । ७-दो या तीन देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से और दो या तीन देश आदिष्ट हैं असद्भावपर्यायों से अतएव पंचप्रदेशी स्कन्ध २०
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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