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________________ ३०४ जैन-दर्शन ४-एक देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से और एक देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से, अतएव चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मा है और आत्मा नहीं है। ५-एक देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से और अनेक देश आदिष्ट हैं असद्भावपर्यायों से, अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मा है और (अनेक) आत्माएं नहीं हैं। ६- अनेक देश आदिष्ट है सद्भावपर्यायों से और एक देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से, अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध (अनेक) आत्माएँ हैं और आत्मा नहीं है। ७-दो देश अादिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से और दो देश अादिष्ट हैं असद्भावपर्यायों से, अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध (दो) आत्माएं हैं और (दो) आत्माएँ नहीं हैं। ८-एक देश अादिष्ट है सद्भावपर्यायों से और एक देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से, अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध अात्मा है और प्रवक्तव्य है। ६-एक देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और अनेक देश आदिष्ट हैं तदुभयपर्यायों से, अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मा है और ( अनेक) अवक्तव्य हैं। १०-अनेक देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से और एक देश आदिष्ट है तदुभयपर्यायों से, अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध ( अनेक ) आत्माए हैं और अवक्तव्य है। ११--दो देश आदिष्ट हैं सद्भावपर्यायों से और दो देश आदिष्ट हैं तदुभय पर्यायों से, अतः चतुष्प्रदेशी स्कन्ध (दो) आत्माएँ हैं और (दो) अवक्तव्य हैं। .१२--एक देश अादिष्ट है असद्भावपर्यायों से और एक देश आदिष्ट है तदुभय पर्यायों से, अतएव चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मा नहीं है और अवक्तव्य है। १३–एक देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और अनेक देश आदिष्ट हैं तदुभय पर्यायों से, अतएव चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मा नहीं है और (अनेक) अवक्तव्य हैं।
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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