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________________ स्याद्वाद ३०३ सद्भावपर्यायों से आदिष्ट है, अतएव त्रिप्रदेशी स्कन्ध (दो) आत्माएँ हैं और आत्मा नहीं हैं । ७ -- एक देश सद्भावपर्यायों से प्रदिष्ट है और दूसरा देश तदुभयपर्यायों से आदिष्ट है, अतः त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है और अवक्तव्य है | ८---- ८ -- एक देश सद्भावपर्यायों से प्रदिष्ट है और दो देश तदुभय पर्यायों से आादिष्ट हैं, अतएव त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है और (दो) अवक्तव्य हैं । E-दो देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट हैं और एक देश तदुभय पर्यायों से श्रादिष्ट है, इसलिए त्रिप्रदेशी स्कन्ध (दो) श्रात्माएँ हैं. और अवक्तव्य है । १० - एक देश प्रदिष्ट है ग्रसद्भावपर्यायों से और दूसरा देश आदिष्ट है तदुभय पर्यायों से, अतएव त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा नहीं है और प्रवक्तव्य है । ११ - एक देश आदिष्ट है असद्भावपर्यायों से और दो देश आदिष्ट हैं तदुभय पर्यायों से, अतः त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा नहीं है और (दो) वक्तव्य हैं । १२ - दो देश असद्भावपर्यायों से आदिष्ट हैं और एक देश तदुभय पर्यायों से श्रादिष्ट है, अतः त्रिदेशी स्कन्ध (दो) आत्माएँ नहीं है और अवक्तव्य है । १३ -- एक देश सद्भावपर्यायों से आदिष्ट है, एक देश असद्भावपर्यायों के प्रदिष्ट है, और एक देश तदुभय पर्यायों से प्रादिष्ट है, अतएव त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा है, आत्मा नहीं है और प्रवक्तव्य है । चतुष्पदेशी स्कन्ध के विषय में प्रश्न करने पर महावीर ने १९ भंगों में उत्तर दिया । इस उत्तर का स्पष्टीकरण इस प्रकार है आत्मा है । १ - चतुष्प्रदेशी स्कन्ध आत्मा के आदेश से २ - चतुष्प्रदेशी स्कन्ध पर के आदेश से आत्मा नहीं है । ३-चतुष्प्रदेशी स्कन्ध तदुभय के आदेश से वक्तव्य है ।
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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