SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 313
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्याद्वाद २७६ गौतम-भगवन् ! जीव सकम्प हैं या निष्कम्प ? महावीर--- गौतम ! जीव सकम्प भी हैं और निष्कम्प भी। गौतम---यह कैसे ? महावीर-जीव दो प्रकार के हैं-संसारी और मुक्त । मुक्त जोव दो प्रकार के हैं अनन्तर सिद्ध और परम्पर सिद्ध । परम्पर । सिद्ध निष्कम्प हैं और अनन्तर सिद्ध सकम्प । संसारी जीवों के भी दो भेद हैं-शैलेशी और अशैलेशी। शैलेशी जीव निष्कम्प होते हैं और अशैलेशी सकम्प' । गौतम-जीव सवीर्य हैं या अवीर्य । महावीर-जीव सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी । गौतम-~-यह कैसे ? महावीर-~-जीव दो प्रकार के हैं---संसारी और मुक्त । मुक्त तो अवीर्य हैं । संसारी जीव दो प्रकार के हैं-शैलेशीप्रतिपन्न और अशैलेशीप्रतिपन्न । शैलेशीप्रतिपन्न जीव लब्धिवीर्य की अपेक्षा से सवीर्य हैं और करणवीर्य की अपेक्षा से अवीर्य हैं। अशैलेशीप्रतिपन्न जीव लब्धिवीर्य की अपेक्षा से सवीर्य हैं, और करणवीर्य की अपेक्षा से सवीर्य भी हैं और अवीर्य भी। जो जीव पराक्रम करते हैं वे करणवीर्य की अपेक्षा से सवीर्य हैं। जो जीव पराक्रम नहीं करते वे करणवीर्य की अपेक्षा से अवीर्य हैं । __गौतम-यदि कोई यह कहे कि मैं सर्वप्राण, सर्वभूत, सर्वजीव, सर्वसत्त्व की हिंसा का प्रत्याख्यान (त्याग) करता है तो उसका यह प्रत्याख्यान सुप्रत्याख्यान है या दुष्प्रत्याख्यान ? महावीर-~-कथंचित् सुप्रत्याख्यान है और कथंचित् दुष्प्रत्याख्यान है। गीतम~यह कैसे ? महावीर-जो यह नहीं जानता कि ये जीव हैं और ये अजीव, य त्रस हैं और ये स्थावर, उसका प्रत्याख्यान दुष्प्रत्याख्यान है। वह १-भगवती सूत्र, २५।४ २-वही, १८७२
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy