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________________ २७८ जैन-दर्शन आगे बढ़ गया। महावीर ने इस दृष्टि पर बहुत भार दिया, जबकि बुद्ध ने यथावसर उसका प्रयोग तो कर लिया परन्तु उसे विशेष महत्व न दिया । बुद्ध के विभज्यवाद और महावीर के अनेकान्तवाद में कितनी अधिक समानता है, इसे समझने के लिए कुछ उदाहरण देते हैं। माणवक और युद्ध की तरह गौतमादि और महावीर के बीच भी इसी प्रकार की चर्चा हुई है। जयन्ती-भगवन् ! सोना अच्छा है या जगना ? महावीर-जयन्ति ! कुछ जीवों का सोना अच्छा है और कुछ जीवों का जगना अच्छा है। जयन्ती---यह कैसे ? महावीर-जो जीव अधर्मी हैं, अधर्मानुग हैं, अमिष्ठ हैं, अधर्माख्यायी हैं, अधर्मप्रलोकी हैं, अधर्मप्ररज्जन हैं, अधर्मसमाचार हैं, अधार्मिक वृत्तियुक्त हैं, वे सोते रहें, यही अच्छा है, क्योंकि यदि वे सोते रहेंगे तो अनेक जीवों को पीड़ा नहीं होगी। इस प्रकार वे स्व, पर और उभय को अधार्मिक क्रिया में नहीं लगावेंगे, अतएव उनका सोना अच्छा है। जो जीव धार्मिक हैं, धर्मानुग हैं, यावत् धामिक वृत्तिवाले हैं उनका जगना अच्छा है, क्योंकि वे अनेक जीवों को सुख देते हैं । स्व, पर और उभय को धार्मिक कार्य में लगाते हैं। अतएव उनका जागना अच्छा है । जयन्ती-भगवन् ! बलवान होना अच्छा या निर्बल होना ? महावीर-जयन्ति ! कुछ जीवों का बलवान होना अच्छा है और कुछ जोवों का निर्बल होना अच्छा है। जयन्ती-यह कैसे ? महावीर-जो जीव अधार्मिक हैं यावत् अधार्मिक वृत्ति वाले हैं उनका निर्बल होना अच्छा है, क्योंकि यदि वे बलवान् होंगे तो अनेक जीवों को कष्ट देंगे। जो जीव धार्मिक हैं यावत् धार्मिक वृत्ति वाले हैं उनका बलवान् होना अच्छा है, क्योंकि वे बलवान् होने से अधिक जीवों को सुख गे'। १-भगवती सूत्र, १२.२।४४३
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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