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________________ ११६ मैन दर्शन और उसका आधार विषयों पर टिप्पण लिखे हैं । भारतीय दर्शन के तुलनात्मक अध्ययन के लिए इनका विशेष महत्व है । ये ग्रन्थ भारतीय विद्याभवन-बम्बई से प्रकाशित हुए हैं । पं० मालवरिणयाजी की दूसरी कृति गणधरवाद है । यह ग्रन्थ गुजरात विद्यासभा-अहमदाबाद की ओर से प्रकाशित हुआ है । उक्त ग्रन्थ विशेषावश्यक भाष्य के एक भाग के आधार से गुजराती भाषा में लिखा गया है। इसका मूल पाठ जैसलमेर भंडार की सबसे प्राचीन प्रति के आधार से तैयार किया गया है । इसकी प्रस्तावना तुलनात्मक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इन ग्रन्थों के अतिरिक्त जैनसंस्कृति संशोधन मंडल बनारस से प्रकाशित आगमयुग का अनेकान्तवाद, जैन श्रागम, जैनदार्शनिक साहित्य का सिंहावलोकन आदि पुस्तकें लेखक की विद्वत्तापूर्ण छोटी-छोटी कृतियाँ हैं। प्रो० ए० एन० उपाध्ये द्वारा सम्पादित प्रवचनसार और प्रो० ए० चक्रवर्ती द्वारा अनूदित एवं सम्पादित समयसार भी विशेष महत्व रखते हैं। प्रवचनसार की लम्बी प्रस्तावना ऐतिहासिक एवं दार्शनिक दृष्टियों से भी विशेष महत्वपूर्ण है । यह प्रस्तावना अँग्रेजी में है । समयसार की भूमिका जैनदर्शन के महत्वपूर्ण विषयों से परिपूर्ण है। डा० हीरालाल जैन ने षड्खण्डागम धवला-टीका के सभी भागों का सम्पादन कर लिया है । पं० दरबारीलाल कोटिया कृत प्राप्तपरीक्षा का हिन्दी अनुवाद भी एक अच्छी कृति है । पूज्यपादकृत तत्त्वार्थसूत्र की सर्वार्थसिद्धि टीका का संक्षिप्त संस्करण पं० चेनसुखदासजी ने तैयार किया है और इसका सम्पादन किया है सी० एस० मल्लिनाथ ने । इस संस्करण की जो सबसे बड़ी विशेषता है वह है अन्त में दिये गए एक सौ छः पृष्ठ के अँग्रेजी टिप्पण । ये टिप्पण विद्वत्तापूर्ण हैं तथा बड़े परिश्रम से तैयार किए गए हैं। प्रारम्भ में भूमिका भी काफी अच्छी लिखी गई है। भारतीय पुरातत्व के सुप्रसिद्ध विद्वान् डा० विमलाचरण ला ने कुछ जैनसूत्रों के विषय मैं लेख लिखे । उनका संग्रह Some Canonical Jaina Sutras के नाम से रॉयल ऐशियाटिक सोसायटी की बम्बई शाखा की ओर से प्रकाशित हुआ है । इन लेखों से जैनसूत्रों के अध्ययन की दिशा का
SR No.010321
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohanlal Mehta
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1959
Total Pages405
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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